गीता में आसक्ति का मूल कारण क्या है?

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गीता में आसक्ति का मूल कारण | गीता के अनुसार व्यसन कारण
Answer

आसक्ति के बंधन से मुक्ति की ओर पहला कदम
प्रिय मित्र, जब हम अपने मन की गहराई में झांकते हैं, तो अक्सर पाते हैं कि हमारी इच्छाएँ और आदतें हमें अपने वश में कर लेती हैं। ये आसक्तियाँ हमें अपनी पहचान, सुख-दुख और शांति से दूर ले जाती हैं। परंतु समझिए, आप अकेले नहीं हैं, यही संघर्ष मानव जीवन का हिस्सा है। भगवद् गीता में इस समस्या का मूल कारण और समाधान दोनों ही स्पष्ट रूप से बताए गए हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्रीभगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 62-63
संस्कृत:
ध्यानात् कौन्तेय वैराग्यं प्राप्तोऽर्जुनस्तदा स्थितः।
ज्ञानं तत्त्वदर्शिनां जितात्मनः प्रशान्तकामा: ॥ 62 ॥
इन्द्रियस्येन्द्रियस्यार्थे रागद्वेषौ व्यजायत।
रागविप्रतिपन्नेषु तत्त्वज्ञानाभावश्च जायते॥ 63 ॥
हिंदी अनुवाद:
हे कांतये (अर्जुन)! जब कोई व्यक्ति ध्यान से वैराग्य (असक्ति) प्राप्त करता है, तब वह ज्ञानवान, आत्मा पर विजय प्राप्त करने वाला और शांतचित्त हो जाता है।
इन्द्रिय जब इन्द्रियार्थ (इन्द्रियों के विषय) की ओर आकर्षित होता है, तो उसमें राग (आसक्ति) और द्वेष (घृणा) उत्पन्न होते हैं। जो लोग राग और द्वेष में फंसे रहते हैं, उनमें तत्त्वज्ञान (सच्चे ज्ञान) का अभाव होता है।
सरल व्याख्या:
हमारी आसक्ति का मूल कारण है इन्द्रियों का विषय वस्तुओं के प्रति आकर्षण। जब मन और इन्द्रियाँ बाहरी वस्तुओं में लिप्त हो जाती हैं, तो राग-द्वेष जन्म लेते हैं। यह अज्ञान की स्थिति है, जिससे व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरूप से दूर हो जाता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. इन्द्रियों का संयम: आसक्ति का मूल कारण इन्द्रियों का अनियंत्रित आकर्षण है। जब हम अपने इन्द्रियों को नियंत्रित करते हैं, तो आसक्ति अपने आप कम होती है।
  2. सच्चे ज्ञान की प्राप्ति: जो व्यक्ति अपने आत्मस्वरूप को समझता है, वह बाहरी वस्तुओं से आसक्ति नहीं करता। ज्ञान ही मुक्ति की चाबी है।
  3. ध्यान और वैराग्य: मन को स्थिर और एकाग्र रखकर वैराग्य (असक्ति) प्राप्त करना संभव है।
  4. कर्मयोग का अभ्यास: फल की चिंता किए बिना कर्म करना आसक्ति को कम करता है।
  5. अहंकार का त्याग: मैं और मेरा का भ्रम जब टूटता है, तब आसक्ति का बंधन भी टूटता है।

🌊 मन की हलचल

"मैं क्यों बार-बार उन्हीं चीज़ों के पीछे भागता हूँ जो मुझे अस्थायी सुख देती हैं? जब मैं उनसे दूर होता हूँ, तो एक खालीपन सा महसूस होता है। क्या मैं कभी इस चक्र से बाहर निकल पाऊंगा?"
ऐसे सवाल आपके मन में उठना स्वाभाविक है। यह समझना जरूरी है कि यह जाल सभी के लिए है, और इससे बाहर निकलने का रास्ता भी गीता में बताया गया है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, देखो, तुम्हारे आसक्ति के पीछे तुम्हारा स्वयं का मन है। जब तुम उसे समझोगे, संयमित करोगे, तब यह बंधन टूट जाएगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हें ज्ञान और धैर्य दूंगा। अपने कर्मों को निष्ठा से करो, फल की चिंता त्याग दो, और अपने भीतर की शांति को पहचानो। यही तुम्हारा मुक्तिदाता मार्ग है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक विद्यार्थी था, जो परीक्षा की तैयारी में इतना उलझा था कि वह केवल अंक पाने की चाह में इतना आसक्त हो गया कि उसने अपनी सेहत और मन की शांति खो दी। उसका गुरु उससे बोला, "बेटा, ध्यान रखो कि तुम्हारा असली लक्ष्य ज्ञान है, न कि केवल अंक। जब तुम ज्ञान को अपनाओगे, तो अंक अपने आप आएंगे।"
ठीक उसी प्रकार, जब हम बाहरी वस्तुओं की बजाय अपने अंदर के ज्ञान और शांति को अपनाते हैं, तो आसक्ति अपने आप कम हो जाती है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने दिन में कम से कम ५ मिनट ध्यान लगाओ। अपनी सांसों को महसूस करो और मन को बाहरी वस्तुओं से हटाकर अपने भीतर की शांति से जोड़ो। यह छोटा अभ्यास आसक्ति को कम करने की दिशा में पहला कदम है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं समझ पा रहा हूँ कि मेरी कौन-कौन सी इच्छाएँ और आदतें मुझे बांध रही हैं?
  • मैं उन बंधनों को तोड़ने के लिए क्या एक छोटा कदम आज उठा सकता हूँ?

आसक्ति के बंधन से आज़ादी की ओर बढ़ते कदम
प्रिय मित्र, याद रखो, आसक्ति का बंधन तुम्हारा स्वाभाविक हिस्सा नहीं, बल्कि मन की एक स्थिति है। गीता की शिक्षाओं को अपनाकर, संयम और ज्ञान से तुम इस बंधन से मुक्त हो सकते हो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, इस यात्रा में धैर्य रखो, क्योंकि हर दिन एक नई शुरुआत है।
शांति और प्रेम के साथ आगे बढ़ो। 🌸

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गीता के अनुसार, आसक्ति का मूल कारण अहंकार और इच्छाओं का अधिभार है, जो व्यक्ति को मोह में बांधता है और मोक्ष से दूर ले जाता है।