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गीता में हम जिस किसी से प्रेम करते हैं, उसे छोड़ देने के बारे में क्या कहा गया है?

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गीता में हम जिस किसी से प्रेम करते हैं, उसे छोड़ देने के बारे में क्या कहा गया है?

चलो प्रेम की परिपाटी समझें — छोड़ना भी एक कला है
साधक,
जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो उसका साथ हमारे मन को गहरा सुख देता है। परंतु जीवन की अनित्य धारा में, कभी-कभी हमें उन प्रियजनों को छोड़ना पड़ता है। यह छोड़ना, जो कभी-कभी विदा का दुःख लेकर आता है, गीता हमें कैसे समझाती है? आइए, इस प्रश्न को प्रेम और शाश्वत सत्य की दृष्टि से समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक: प्रेम और त्याग का सार

अध्याय 2, श्लोक 27
"जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि॥"

हिंदी अनुवाद:
जिसका जन्म होता है, उसका निश्चित रूप से मृत्यु भी होती है, और जो मर चुका है उसका पुनः जन्म होता है। इसलिए इस अनिवार्य सत्य के कारण तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।
सरल व्याख्या:
प्रेम में जो हम खोते हैं, वह केवल शरीर या रूप है। आत्मा अमर है, जन्म-मरण उसके चक्र हैं। इस शाश्वत सत्य को जानकर, हमें छोड़ने में भी शांति और स्वीकृति मिलती है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. प्रेम को बंधन न समझो, बल्कि अनुभव समझो। प्रेम का अर्थ हमेशा स्थिरता नहीं, बल्कि गहराई से जुड़ना है। छोड़ना भी प्रेम की एक परीक्षा है।
  2. आत्मा अमर है, शरीर नश्वर। जो हम प्रेम करते हैं, वह आत्मा के रूप में सदैव हमारे साथ है। इसलिए छोड़ना अंतिम नहीं, एक परिवर्तन है।
  3. शोक में डूबकर अपने कर्म से विमुख न हो। गीता हमें सिखाती है कि दुःख में भी अपने धर्म और कर्म का पालन करना चाहिए।
  4. स्वीकारोक्ति से मन को शांति मिलती है। जो कुछ भी आता है, उसे स्वीकार कर लेना ही सच्ची बुद्धिमत्ता है।
  5. संसार की अनित्य प्रकृति को समझो। प्रेम में भी परिवर्तन और क्षणभंगुरता को अपनाना जीवन का नियम है।

🌊 मन की हलचल

"कैसे छोड़ दूं जिसे दिल से चाहा? वह मेरी पहचान है, मेरा सहारा। क्या बिना उसके मैं अधूरा नहीं रह जाऊंगा? यह दर्द सहना मुश्किल है। क्या प्रेम का अर्थ ही इतना ही था—अलग होना?"
प्रिय, यह सवाल हर प्रेमी के मन में उठते हैं। पर याद रखो, प्रेम का असली अर्थ है स्वतंत्रता भी देना, न कि केवल पकड़ना। छोड़ना भी प्रेम की भाषा है, जब हम समझते हैं कि हर चीज़ इस संसार में अस्थायी है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, जो तुम प्रेम करते हो, वह तुम्हारा अंश है, तुम्हारा ही स्वरूप। उसे छोड़ना नहीं, बल्कि उसकी असली प्रकृति को समझना है। जैसे नदी समुद्र से मिलकर अपने अस्तित्व को पूर्ण करती है, वैसे ही प्रेम में भी त्याग और स्वीकार्यता का होना आवश्यक है। दुःख में डूबो मत, बल्कि अपने भीतर उस प्रेम के अमर स्वरूप को खोजो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र ने अपने गुरु से पूछा, "गुरुजी, जब मैं अपने प्रिय मित्र से दूर होता हूँ तो मन उदास हो जाता है, क्या मैं उसे भूल जाऊँ?" गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, "नहीं बेटा, मित्रता का मतलब है एक फूल की खुशबू महसूस करना। अगर तुम फूल को पकड़कर तोड़ने लगोगे तो खुशबू छूट जाएगी। उसे प्यार से देखो, उसे अपनी आत्मा में जगह दो। जब समय आएगा, फूल खुद अपने आप खिल जाएगा।"

✨ आज का एक कदम

आज, अपने मन में उस प्रेम को महसूस करो जिसे तुमने कभी छोड़ा या खोया है। उसे धन्यवाद दो कि उसने तुम्हें प्रेम की अनुभूति दी। और फिर गहरी सांस लेकर, उसे प्रेम के साथ मुक्त कर दो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं प्रेम को पकड़ने या छोड़ने के बीच संतुलन बना पा रहा हूँ?
  • क्या मैं समझ पा रहा हूँ कि प्रेम का असली स्वरूप क्या है — क्या वह केवल साथ होना है, या उससे कहीं अधिक?

प्रेम का त्याग — एक नई शुरुआत
साधक, प्रेम में छोड़ना अंत नहीं, एक नयी शुरुआत है। यह जीवन के अनित्य सत्य को स्वीकार करने का साहस है। अपने मन को शांति दो, और विश्वास रखो कि प्रेम की ऊर्जा सदैव तुम्हारे साथ है। तुम अकेले नहीं हो, यह यात्रा हर किसी की है। प्रेम में त्याग भी एक दिव्य उपहार है।
शुभकामनाएँ,
तुम्हारा आध्यात्मिक मार्गदर्शक

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