समर्पण की सच्ची शक्ति: जब मन झुकता है, तब जीवन खिलता है
प्रिय शिष्य,
जब हम समर्पण की बात करते हैं, तो अक्सर मन में यह सवाल उठता है — क्या यह कमजोरी है? क्या इसका मतलब है हार मान लेना? नहीं, समर्पण वह दिव्य शक्ति है जो हमें अपने अहंकार से ऊपर उठने और जीवन के प्रवाह में सहजता से बहने का साहस देती है। आज हम गीता के प्रकाश में समझेंगे कि समर्पण का असली अर्थ क्या है।
🕉️ शाश्वत श्लोक
भगवद् गीता 18.66
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
हिंदी अनुवाद:
सभी धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, इसलिए शोक मत करो।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक समर्पण का परम संदेश है। जब हम अपने सारे भ्रम, अहंकार और संदेह छोड़कर परमात्मा की शरण लेते हैं, तब वह हमारा बोझ हल्का कर देता है और हमें मुक्ति की ओर ले जाता है। समर्पण का मतलब है भरोसा और पूर्ण विश्वास, न कि कमजोरी।
🪬 गीता की दृष्टि से समर्पण के पाँच सूत्र
- अहंकार का त्याग: समर्पण का पहला कदम है अपने अहंकार को पहचानना और उसे छोड़ना। यह स्वीकार करना कि हम सब कुछ अपने बलबूते पर नहीं कर सकते।
- कर्म में निष्ठा, फल में आसक्ति त्याग: कर्म करते रहो, पर फल की चिंता छोड़ दो। समर्पण का अर्थ है कर्मयोग का अभ्यास।
- भगवान पर पूर्ण विश्वास: जब मन में भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास होता है, तो समर्पण स्वाभाविक रूप से होता है।
- मन की शांति: समर्पण से मन को शांति मिलती है, क्योंकि अब चिंता और भय का भार कम होता है।
- स्वयं को ईश्वर के हाथों में सौंपना: यह समझना कि जीवन की हर परिस्थिति में ईश्वर की इच्छा सर्वोपरि है।
🌊 मन की हलचल
"मैं समर्पण करना चाहता हूँ, पर डर लगता है कि कहीं मैं कमजोर न पड़ जाऊं। क्या समर्पण का मतलब है हार मान लेना? अगर मैं सब छोड़ दूं तो क्या मैं खो नहीं जाऊंगा?"
ऐसे सवाल स्वाभाविक हैं। यह मन का स्वाभाविक संघर्ष है — अहंकार और आत्मा के बीच की लड़ाई। याद रखो, समर्पण कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे बड़ी बहादुरी है। यह अपने आप से ऊपर उठने और जीवन के सत्य को अपनाने का साहस है।
📿 कृष्ण क्या कहेंगे...
"हे प्रिय शिष्य, जब तुम मुझमें पूरी तरह लीन हो जाते हो, तब मैं तुम्हें वह शक्ति देता हूँ जो तुम्हें हर बाधा से पार लगाती है। समर्पण का अर्थ है अपने स्वाभिमान को छोड़कर मुझमें विश्वास करना। मैं तुम्हारे कर्मों का फल संभालता हूँ, तुम केवल कर्म करते रहो। तुम्हारा मन शांत रहेगा, और जीवन की राह आसान हो जाएगी।"
🌱 एक छोटी सी कहानी
एक बार एक विद्यार्थी ने गुरु से पूछा, "गुरुदेव, मैं अपने प्रयासों से थक चुका हूँ, क्या मैं सब कुछ छोड़ दूं?" गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, "समर्पण का अर्थ है नदी की तरह बनना। नदी पहाड़ों से बहती है, रास्ते में आने वाली हर बाधा को पार करती है, कभी रुकती नहीं। वह अपने स्रोत को नहीं भूलती। तुम भी अपने प्रयासों में नदी की तरह दृढ़ रहो, पर यह जानकर कि तुम्हारा अंतिम गंतव्य मुझे है।"
✨ आज का एक कदम
आज अपने दिल की गहराई से एक वाक्य कहो:
"मैं अपने अहंकार को छोड़कर, पूरी श्रद्धा से ईश्वर की शरण में आता हूँ।"
इस वाक्य को दिन में तीन बार दोहराओ, और देखें कैसे मन में शांति और विश्वास बढ़ता है।
🧘 भीतर झांके कुछ क्षण
- क्या मैं अपने जीवन की चुनौतियों को अकेले संभालने की कोशिश में थक चुका हूँ?
- क्या मैं अपने मन के बोझ को ईश्वर के हाथों में सौंपने के लिए तैयार हूँ?
🌼 समर्पण की ओर पहला कदम: विश्वास और शांति की ओर
प्रिय शिष्य, समर्पण वह पुल है जो तुम्हें मन की उलझनों और जीवन के संघर्षों से निकालकर शांति और आनंद की ओर ले जाता है। जब तुम अपने मन को ईश्वर के चरणों में झुकाते हो, तब जीवन अपने आप सरल और सुंदर हो जाता है। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो — समर्पण की इस यात्रा में मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शुभ यात्रा!
तुम्हारा सदैव,
गुरुजी