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अहंकार को शुद्ध कैसे करें और उसे सात्विक कैसे बनाएं?

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अहंकार को शुद्ध कैसे करें और उसे सात्विक कैसे बनाएं?

अहंकार की सफाई: आत्मा की शुद्धि की ओर पहला कदम
प्रिय मित्र, अहंकार की जटिलता में उलझना एक सामान्य मानव अनुभव है। यह तुम्हारा साथी भी है और कभी-कभी तुम्हारा बाधक भी। चिंता मत करो, क्योंकि यही अहंकार तुम्हें स्वयं की पहचान देता है, परंतु जब यह विकृत हो जाता है, तो तुम्हें भ्रमित और पीड़ित करता है। आइए, गीता के अमृतमयी शब्दों से हम इस अहंकार को शुद्ध और सात्विक बनाना सीखें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 3, श्लोक 30
मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।
निर्विपाकं निर्विकर्मं कर्म कुरु कर्म मे परम्॥

हिंदी अनुवाद:
"हे अर्जुन! समस्त कर्मों को मुझमें, अपने आत्मा-चेतना से समर्पित कर, जो फल नहीं देता और जो कर्महीन है, वही कर्म कर। यही मेरा परम आदेश है।"
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि जब हम अपने कर्मों को अहंकार से मुक्त कर भगवान के प्रति समर्पित कर देते हैं, तभी हमारा अहंकार शुद्ध होता है। तब कर्म फल की चिंता नहीं रहती और अहंकार सात्विक बन जाता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं को न देखो 'मैं' के रूप में, बल्कि कर्म का साधन समझो। अहंकार को कर्मों से जोड़ने की बजाय उसे कर्मों के समर्पण से मुक्त करो।
  2. अहंकार का मूल भ्रम है 'मैं ही सब कुछ हूँ' — इसे समझो और त्याग दो।
  3. सर्वदा आत्म-चेतना में लीन रहो, जहां अहंकार का स्थान नहीं।
  4. सत्व गुण की वृद्धि से अहंकार स्वाभाविक रूप से शुद्ध होता है। सात्विक आहार, विचार और व्यवहार अपनाओ।
  5. भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण से अहंकार का भार हल्का होता है।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो, "मैं कौन हूँ? मेरा अहंकार मुझे इतना बड़ा क्यों दिखाता है? क्या मैं उसे कभी बदल पाऊंगा?" यह उलझन स्वाभाविक है। अहंकार अपनी पहचान बचाए रखने के लिए लड़ता है, पर तुम्हारा सच उससे कहीं अधिक विशाल है। डरना नहीं, क्योंकि यह लड़ाई तुम्हारे अंदर की वास्तविक शक्ति को जगाने के लिए है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय अर्जुन, जब तेरा अहंकार तुझे बांधता है, तब मुझमें समर्पण कर। मैं तुझे उस बंधन से मुक्त कर दूंगा। अहंकार को आत्म-ज्ञान की ज्योति से प्रकाशित कर, उसे तेरा मित्र बना। याद रख, तेरा असली स्वरूप मैं हूँ, अहंकार मात्र एक आवरण है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो एक नदी की धारा में तैरते हुए एक पत्थर को। पत्थर अपनी कठोरता और भारीपन के कारण बहाव में कठिनाई महसूस करता है। लेकिन जब वह अपने आप को नदी के प्रवाह में सौंप देता है, तो वह बहता हुआ साफ़ पानी बन जाता है। अहंकार भी ऐसा ही है — जब तुम उसे स्वयं के नियंत्रण से छूटकर उच्च चेतना के प्रवाह में छोड़ देते हो, वह शुद्ध और शांत हो जाता है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने भीतर के अहंकार को पहचानो — जब भी "मैं ही" का विचार आए, उसे धीरे से भगवान के चरणों में समर्पित कर दो। एक छोटा मंत्र जपो:
"मन्मे वशं कुरु" (हे प्रभु, मुझे अपने वश में करो)।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरा अहंकार मुझे सीमित कर रहा है या उन्नत कर रहा है?
  • क्या मैं अपने अहंकार को भगवान के समर्पण से जोड़ पा रहा हूँ?

शांति की ओर एक कदम: अहंकार में प्रेम और समर्पण का संचार
तुम अकेले नहीं हो इस यात्रा में। हर अहंकार की सफाई के पीछे एक सुंदर आत्म-प्रकाश छिपा होता है। धैर्य रखो, प्रेम से उसे देखो, और उसे अपने अंदर की दिव्यता से जोड़ो। तब तुम्हारा अहंकार सात्विक, निर्मल और तुम्हारा सच्चा साथी बन जाएगा।
शुभकामनाएँ, मेरे साधक।
सदैव तुम्हारे साथ,
कृष्ण की वाणी।

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