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वास्तविक स्व और झूठे स्व में क्या अंतर है?

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वास्तविक स्व और झूठे स्व में क्या अंतर है?

अपने अंदर की सच्चाई से मिलो: वास्तविक स्व और झूठे स्व की पहचान
साधक, जब तुम अपने अस्तित्व की गहराइयों में उतरना चाहते हो, तो सबसे पहला सवाल यही उठता है — मेरा असली "मैं" कौन है? क्या मैं वही हूँ जो दिखता हूँ, जो सोचता हूँ, जो महसूस करता हूँ, या उससे कहीं अधिक? चलो इस उलझन को भगवद गीता की अमर शिक्षाओं के साथ समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 19
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥

हिंदी अनुवाद:
यह आत्मा (स्वयं) न तो शस्त्रों से कटती है, न अग्नि से जलती है, न पानी से भीगती है और न हवा से सूखती है।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि हमारा वास्तविक स्व, जो आत्मा है, न तो कभी नष्ट होता है, न उसका कोई नुकसान होता है। जो नष्ट होता है, वह केवल हमारा शरीर, मन और बुद्धि है — वे सब परिवर्तनशील हैं। वास्तविक आत्मा शाश्वत, अमर और अविनाशी है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं को पहचानो, न कि बाहरी रूपों को: तुम्हारा असली स्वरूप शरीर या मन नहीं, बल्कि आत्मा है जो सभी रूपों से परे है।
  2. अहंकार (ego) एक भ्रम है: जो तुम अपने आप को समझते हो — जैसे "मैं यह हूँ", "मेरा यह है" — वह अहंकार है, जो असली स्व से अलग है।
  3. परिवर्तनशील और अविनाशी का भेद समझो: शरीर, मन, इंद्रियाँ सब क्षणभंगुर हैं; आत्मा स्थायी है।
  4. स्वयं को अनुभव करो, न कि केवल सोचो: ज्ञान मात्र से नहीं, अनुभव से ही असली स्व की अनुभूति होती है।
  5. अहंकार से मुक्ति ही मुक्ति है: जब अहंकार टूटता है, तब वास्तविक स्व की अनुभूति होती है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारे मन में सवाल उठते होंगे — "मैं कौन हूँ? क्या मैं वही हूँ जो मेरा शरीर कहता है? क्या मेरी भावनाएँ, विचार, और पहचान ही मेरा असली स्वरूप हैं?" यह उलझन सामान्य है। क्योंकि दुनिया ने हमें अहंकार का इतना मजबूत आवरण दिया है कि असली स्व की आवाज़ दब जाती है।
पर याद रखो, यह भ्रम है, और हर भ्रम की तरह यह भी टूट सकता है। जब तुम अपने भीतर की शांति खोजने लगोगे, तो यह आवाज़ धीरे-धीरे स्पष्ट होने लगेगी।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, जो शरीर को अपना समझता है, वह अज्ञान में पड़ा है। तुम्हारा असली स्वरूप वह है जो जन्म नहीं लेता, न मरता है। वह शाश्वत है, नित्य है। जब तुम अपने मन के आवरण को हटाओगे, तब तुम्हें अपनी आत्मा की दिव्यता का अनुभव होगा। अहंकार को त्यागो, और सच्चे स्व से जुड़ो। यही मोक्ष है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र ने अपने आप से पूछा, "मैं कौन हूँ?" उसने अपने शरीर को देखा, पर वह बदलता रहता था। उसने अपने विचारों को देखा, पर वे भी आते-जाते रहते थे। फिर उसने एक दीपक की लौ देखी, जो अंधकार में स्थिर जल रही थी। उसने महसूस किया, "मैं उस दीपक की तरह हूँ, जो स्थिर और शाश्वत है, न कि उस धुएँ या हवा की तरह जो चलती रहती है।"
जैसे दीपक की लौ अंधकार में स्थिर रहती है, वैसे ही तुम्हारा आत्मा भी सभी भ्रमों से परे स्थिर है।

✨ आज का एक कदम

आज थोड़ा समय निकालकर अपने अंदर बैठो। सांसों पर ध्यान दो और खुद से पूछो — "क्या मैं अपने शरीर, मन या विचार हूँ? या मैं उस सबके पीछे स्थिर, शाश्वत चेतना हूँ?" इस प्रश्न पर ध्यान दो, और आए विचारों को बिना रोक-टोक देखो।

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने आप को केवल बाहरी पहचान से जोड़ रहा हूँ?
  • क्या मैं अपने भीतर की शांति को महसूस कर सकता हूँ?
  • क्या मैं अपने अहंकार से ऊपर उठकर अपने वास्तविक स्वरूप को जानने को तैयार हूँ?

🌼 आत्मा की खोज में पहला कदम
तुम अकेले नहीं हो इस यात्रा में। हर महान साधक ने भी यही सवाल किया है। धैर्य रखो, अपने भीतर झांकते रहो, और याद रखो — तुम्हारा असली स्वरूप शाश्वत, अमर और निर्विकार है। धीरे-धीरे वह तुम्हारे सामने प्रकट होगा।
शांत रहो, आत्मा की ओर बढ़ो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।

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