निर्णय के तीन रंग: राजसिक और तमसिक से पार कैसे पाएं?
साधक, जीवन में जब हम निर्णय लेने की स्थिति में होते हैं, तब हमारा मन अक्सर उलझन और भ्रम से भरा होता है। क्या यह निर्णय सच में मेरा है? या यह केवल मेरी इच्छाओं (राजसिक) या अज्ञानता (तमसिक) का प्रभाव है? यह समझना बहुत ज़रूरी है कि हम अपने निर्णयों को किस आधार पर बना रहे हैं। चलिए, भगवद गीता की अमृत वाणी से इस राजसिक और तमसिक निर्णयों की गहराई को समझते हैं।
🕉️ शाश्वत श्लोक
सत्त्वं सुखं रजस्तमः पृथक्क्षिण्मि भावसंज्ञिताः।
रजस्तम इमे हि दृश्यन्ते गुणाः प्रकृतिसम्भवाः॥
— भगवद्गीता 14.6
हिंदी अनुवाद:
सत्त्व, सुख और तम तीनों को मैं भेद करता हूँ। रजस और तमस ये दोनों गुण प्रकृति से उत्पन्न होते हैं।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि हमारे मन और निर्णयों के पीछे तीन प्रमुख प्रकृति के गुण होते हैं — सत्त्व (शुद्धता, ज्ञान, शांति), रजस (काम, इच्छा, उत्साह), और तमस (अज्ञानता, आलस्य, भ्रम)। जब हम निर्णय लेते हैं, तो यह जानना आवश्यक है कि हमारा मन किस गुण के प्रभाव में है।
🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन
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राजसिक निर्णय:
- उत्साह और लालसा से प्रेरित होते हैं।
- अक्सर जल्दबाजी में, केवल अपने लाभ या इच्छाओं के लिए लिए जाते हैं।
- परिणामों के बारे में विचार कम होता है, और भावनाएँ अधिक होती हैं।
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तमसिक निर्णय:
- अज्ञानता, आलस्य और भ्रम से प्रभावित।
- निर्णय टालना, अनजाने में गलत दिशा में जाना।
- भय, संदेह और निराशा से भरे होते हैं।
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सत्त्विक निर्णय:
- शांति, विवेक और स्पष्टता से परिपूर्ण।
- हितकारी, दीर्घकालिक और न्यायसंगत।
- आत्मा और समाज दोनों के लिए लाभकारी।
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स्वयं पर ध्यान दें:
- निर्णय लेते समय अपने मन की शांति और स्पष्टता पर ध्यान दें।
- क्या यह निर्णय आपको अंदर से हल्का और स्थिर महसूस कराता है?
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अहंकार और भावनाओं का निरीक्षण करें:
- क्या निर्णय अहंकार या आवेग से प्रेरित है?
- या यह बुद्धि और विवेक का फल है?
🌊 मन की हलचल
"मेरा मन इतना अस्थिर क्यों है? मैं सही निर्णय कैसे लूँ? क्या मैं फिर से किसी लालच या आलस्य में फंस जाऊँगा? क्या मैं सच में अपने लिए और दूसरों के लिए सही निर्णय कर पा रहा हूँ?" ये सवाल आपके मन में उठते हैं, और यह स्वाभाविक भी है। याद रखिए, निर्णय की प्रक्रिया में उलझन होना मानव स्वभाव है, लेकिन ज्ञान और समझ से हम इसे पार कर सकते हैं।
📿 कृष्ण क्या कहेंगे...
"हे साधक, जब भी तुम निर्णय लेने बैठो, अपने मन को शांत करो। लालसा और आलस्य को पहचानो, उन्हें अपने भीतर से दूर करो। सत्त्व का प्रकाश तुम्हें सही मार्ग दिखाएगा। याद रखो, निर्णय में स्थिरता और विवेक ही तुम्हारे सच्चे साथी हैं।"
🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा
एक बार एक किसान ने दो रास्तों में से एक चुनना था — एक रास्ता था जो जल्दी खेत तक पहुँचाता था लेकिन पत्थरों से भरा था, दूसरा था लंबा पर साफ़ और सुरक्षित। किसान ने जल्दबाजी में पहला रास्ता चुना, क्योंकि वह जल्दी काम शुरू करना चाहता था। लेकिन वह बार-बार गिरता रहा और थक गया। फिर उसने दूसरा रास्ता चुना, जहाँ चलना आसान था और वह आराम से अपने खेत तक पहुँच गया।
यह किसान का पहला निर्णय राजसिक था — जल्दबाजी और लालसा से भरा। दूसरा निर्णय सत्त्विक था — सोच-समझकर और धैर्य से लिया गया। तमसिक निर्णय तो होता जब वह रास्ता चुनता और फिर बैठकर कुछ नहीं करता।
✨ आज का एक कदम
आज जब भी कोई निर्णय लें, एक गहरी सांस लें और खुद से पूछें:
"क्या यह निर्णय मेरे मन में शांति और स्पष्टता ला रहा है? या यह केवल मेरी इच्छा या आलस्य का परिणाम है?"
इस सवाल को अपने निर्णय से पहले जरूर दोहराएँ।
🧘 भीतर झांके कुछ क्षण
- क्या मेरा निर्णय मुझे अंदर से स्थिर और संतुष्ट महसूस कराता है?
- क्या मैं अपने निर्णय में लालसा या भय को पहचान पा रहा हूँ?
🌼 निर्णय की राह पर शांति और स्पष्टता की ओर
साधक, हर निर्णय तुम्हें अपने भीतर के तीन गुणों से परिचित कराता है। राजसिक और तमसिक निर्णयों को पहचानना और उनसे ऊपर उठना ही जीवन की सच्ची बुद्धिमत्ता है। तुम अकेले नहीं हो, कृष्ण की वाणी और गीता का ज्ञान तुम्हारे साथ है। चलो, अब सत्त्व की ओर बढ़ें, जहाँ से तुम्हारे निर्णयों में स्थिरता, शांति और सच्चाई का प्रकाश होगा।
शुभकामनाएँ! 🌸