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क्या अलगाव भावनात्मक पीड़ा का समाधान है?

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क्या अलगाव भावनात्मक पीड़ा का समाधान है?

अकेलेपन की गहराई में — एक साथी की तरह
साधक, जब मन में अकेलापन छा जाता है, और भावनात्मक पीड़ा का सागर उमड़ता है, तो यह स्वाभाविक है कि हम अलगाव की ओर भागें, मानो वह शांति का द्वार हो। पर क्या सच में अलगाव ही समाधान है? चलिए, गीता के अमृतवचन से इस प्रश्न का उत्तर खोजते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 6, श्लोक 5
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥

“मनुष्य को स्वयं को ही उठाना चाहिए, स्वयं को ही गिराना नहीं चाहिए। क्योंकि मनुष्य का अपना आत्मा ही उसका मित्र है और उसका शत्रु भी।”
सरल व्याख्या:
अपने मन को उठाना, अपने भीतर के मित्र को पहचानना और उसे पोषित करना ही वास्तविक समाधान है। अलगाव में छिपना या खुद को गिराना, दोनों मनुष्य के लिए हानिकारक हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. अलगाव से भागना समाधान नहीं, सामना करना है — भावनात्मक पीड़ा को समझो, उसे अपने भीतर से बाहर निकालो।
  2. मन को स्वमित्र बनाओ, न कि शत्रु — अपने मन के साथ संवाद करो, उसे समझो, न कि उसे अलग करो।
  3. संतुलन की ओर बढ़ो — न तो पूरी तरह अकेले रहो, न ही पूरी तरह दूसरों में खो जाओ।
  4. ध्यान और आत्म-अवलोकन से मन को शांति दो — खुद को जानने से मन की उलझनें कम होती हैं।
  5. सहानुभूति और प्रेम से अपने आप को गले लगाओ — खुद से प्रेम करना सीखो, तब ही दूसरों से प्रेम संभव होगा।

🌊 मन की हलचल

“मैं अकेला क्यों महसूस करता हूँ? क्या मेरा दर्द कोई समझेगा? क्या अलग होना मुझे सुकून देगा या और गहरा घाव? मैं डरता हूँ कि कहीं मैं पूरी तरह टूट न जाऊँ।”
ऐसे विचार आना स्वाभाविक हैं। पर याद रखो, अकेलापन कभी-कभी हमें खुद से मिलने का मौका देता है, पर वह रास्ता अकेलेपन के अंधकार में खो जाने का नहीं, बल्कि प्रकाश की ओर बढ़ने का होना चाहिए।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

“हे साधक, अलगाव में मत डूबो। मैं हर पल तेरे साथ हूँ। जब तू अपने मन को समझेगा, उसे प्रेम से देखेगा, तब तू मेरे और अपने भीतर की शक्ति को महसूस करेगा। अकेलापन क्षणिक है, पर आत्मा की मित्रता शाश्वत।”

🌱 एक छोटी सी कहानी

एक बार एक छात्र था जो परीक्षा की चिंता से घिरा था। उसने सोचा कि सब से अलग होकर अकेले बैठना ही समाधान है। पर जब उसने अपने गुरु से बात की, तो गुरु ने कहा, “अकेले बैठना ठीक है, पर अपने मन से दोस्ती कर, उसे समझ, तब तेरा अकेलापन भी साथी बन जाएगा।” छात्र ने ध्यान लगाया, अपने मन को समझने की कोशिश की और पाया कि अकेलापन अब उसका दुश्मन नहीं, बल्कि एक शिक्षक बन गया।

✨ आज का एक कदम

आज के दिन, जब भी अकेलापन महसूस हो, अपनी सांसों पर ध्यान दो। गहरी सांस लो और कहो, “मैं अपने आप का मित्र हूँ। मैं अकेला नहीं हूँ।” इस छोटे से अभ्यास से मन को शांति मिलेगी।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने अकेलेपन को अपने मन का शत्रु मान रहा हूँ?
  • मैं अपने मन से दोस्ती कैसे कर सकता हूँ?
  • क्या मैं खुद को प्रेम और सहानुभूति दे पा रहा हूँ?

अकेलेपन में भी तुम साथ हो — चलो मिलकर आगे बढ़ें
याद रखो, अलगाव कभी समाधान नहीं, बल्कि एक अवसर है अपने भीतर की मित्रता को पहचानने का। तुम अकेले नहीं हो, तुम्हारे भीतर एक प्रकाश है जो तुम्हें हमेशा रास्ता दिखाएगा। चलो, उस प्रकाश को जगाएं और मन की पीड़ा को प्रेम से सहलाएं।
शांति और प्रेम के साथ।

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