साथ चलना है तो समझदारी से चलो — परिवार और जीवनसाथी के प्रति गीता की सीख
प्रिय जीवनसाथी और परिवार के प्रति लगाव की उलझनों में फंसे साथी,
आपके मन में जो भाव और प्रश्न हैं, वे बिल्कुल स्वाभाविक हैं। परिवार हमारा सबसे करीबी संसार है, जहां प्रेम भी होता है और कभी-कभी कष्ट भी। गीता हमें इस रिश्ते के मायने समझाती है — कैसे प्रेम और कर्तव्य के बीच संतुलन बनाएं, कैसे लगाव में उलझ कर खुद को खोने से बचें। चलिए, इस दिव्य संवाद से कुछ प्रकाश लेते हैं।
🕉️ शाश्वत श्लोक
अध्याय 2, श्लोक 47:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो, और न ही कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
परिवार और जीवनसाथी के प्रति जो भी कर्तव्य हैं, उन्हें पूरी निष्ठा और प्रेम से निभाओ, लेकिन फल की चिंता मत करो। लगाव में इतना डूबो मत कि खुद की पहचान खो दो। कर्म करो, पर अपने मन को फल की चिंता से मुक्त रखो।
🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन
- कर्तव्य में निष्ठा, फल में वैराग्य — परिवार के प्रति प्रेम और जिम्मेदारी निभाओ, लेकिन उससे जुड़ी अपेक्षाओं में मत फंसो।
- अहंकार और स्वार्थ से ऊपर उठो — रिश्तों में अपनी अहमियत कम और समझदारी ज्यादा रखो।
- संतुलित मन से प्रेम करो — लगाव हो, पर आत्मा की स्वतंत्रता और शांति भी बनी रहे।
- परिवार को कर्मभूमि समझो — जहां तुम अपने कर्मों से प्रेम, त्याग और समर्पण सीखो।
- सर्वधर्म समभाव अपनाओ — परिवार में हर सदस्य की भिन्नता को स्वीकार करो, सहिष्णु बनो।
🌊 मन की हलचल
“मैं अपने परिवार से कितना जुड़ा हूँ? क्या मेरा लगाव प्रेम है या अपेक्षा? क्या मैं अपनी खुशी दूसरों की खुशी में खोजता हूँ या खुद को भूल जाता हूँ? ये रिश्ते मुझे मजबूर करते हैं या मजबूत? क्या मैं अपने कर्तव्यों से भाग रहा हूँ या उन्हें पूरी लगन से निभा रहा हूँ?”
📿 कृष्ण क्या कहेंगे...
“हे साधक, देखो, परिवार वह मंदिर है जहाँ तुम्हारा कर्म और प्रेम दोनों तपते हैं। पर याद रखो, प्रेम में आसक्ति नहीं, समर्पण होना चाहिए। जब तुम अपने कर्तव्य को बिना फल की चिंता के निभाओगे, तभी रिश्तों में सच्ची शांति आएगी। अपने मन को स्थिर रखो, और प्रेम को अपनी शक्ति बनाओ।”
🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा
एक बार एक वृक्ष था, जो अपने फल को लेकर बहुत चिंतित रहता था। वह हर दिन फल के पकने का इंतजार करता, पर फल पकने में समय लगता। उसके लगाव ने उसे इतना व्यथित कर दिया कि वह अपनी जड़ें कमजोर करने लगा। तब एक अनुभवी वृक्ष ने कहा, “हे वृक्ष, फल आने दो, अपना कर्म करो — पत्ते बढ़ाओ, शाखाएं फैलाओ। फल तो समय पर आएगा, चिंता मत कर। यही जीवन का नियम है।”
इस तरह, परिवार और जीवनसाथी के प्रति लगाव भी वैसा ही है — कर्म करो, प्रेम करो, फल की चिंता मत करो।
✨ आज का एक कदम
आज अपने परिवार के किसी सदस्य से बिना किसी अपेक्षा के सिर्फ प्रेम और कृतज्ञता के भाव से बातचीत करो। देखो, इससे तुम्हारे मन में क्या बदलाव आता है।
🧘 अंदर झांके कुछ क्षण
- क्या मैं अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों को प्रेम से निभा रहा हूँ?
- क्या मेरा लगाव मुझे और मेरे रिश्तों को मजबूत बनाता है या कमजोर?
- मैं अपने मन को फल की चिंता से कैसे मुक्त कर सकता हूँ?
प्रेम और कर्तव्य का संगम — तुम्हारा परिवार, तुम्हारा कर्मभूमि
याद रखो, परिवार और जीवनसाथी के प्रति लगाव गीता के अनुसार एक पवित्र कर्म है, जिसमें प्रेम और समर्पण के साथ-साथ संतुलन और वैराग्य भी जरूरी है। तुम अकेले नहीं हो, यह यात्रा हर किसी की है। धैर्य और समझदारी से इसे जियो, और अपने मन को शांति दो।
शुभकामनाएँ,
आपका आध्यात्मिक साथी।