अहंकार की आंधी में खो जाना: क्या हम अपनी गलतियों को देख पाते हैं?
साधक, जब अहंकार हावी हो जाता है, तो वह हमारे मन के दरवाज़े पर एक भारी परदा डाल देता है। यह परदा हमें अपनी गलतियों से अंधा कर सकता है। लेकिन चिंता मत करो, यह अंधकार स्थायी नहीं है। चलो, भगवद गीता के प्रकाश में इस विषय को समझते हैं।
🕉️ शाश्वत श्लोक
अध्याय 16, श्लोक 4
"दम्भो दर्पोऽभिमानश्च क्रोधः पारुष्यमेव च |
अज्ञानं चाभिजातस्य पार्थ सम्पदामासुरीम् ॥"
हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! दंभ (छल), दर्प (घमंड), अभिमान (अहंकार), क्रोध, कठोरता और अज्ञानता, ये सब अधम और दैवी संपत्तियाँ हैं।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि अहंकार (अभिमान), क्रोध और अज्ञानता हमारे अंदर एक ऐसी शक्ति बन जाते हैं जो हमें सही और गलत का भेद बताने में असमर्थ कर देते हैं। यह हमारे मन को भ्रमित कर, हमारी गलतियों को देखने से रोकते हैं।
🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन
- अहंकार अज्ञानता का बीज है: जब हम अपने अहंकार में फंसे होते हैं, तो हम स्वयं की कमियों को स्वीकार नहीं कर पाते।
- क्रोध और अहंकार ग़लत फैसलों की जड़ हैं: ये भाव मन को धुंधला कर देते हैं, जिससे सुधार का रास्ता बंद हो जाता है।
- स्वयं की समीक्षा आवश्यक है: गीता हमें सिखाती है कि आत्म-जागरूकता से ही हम अपने दोषों को पहचान सकते हैं।
- विनम्रता से मन साफ होता है: अहंकार छोड़कर यदि हम विनम्रता अपनाएं, तो हमारी दृष्टि स्पष्ट होती है।
- सतत अभ्यास से अहंकार पर विजय संभव है: योग और ध्यान के माध्यम से हम अपने अंदर के अहंकार को कम कर सकते हैं।
🌊 मन की हलचल
तुम सोच रहे हो, "क्या मैं सच में अपनी गलतियों को नहीं देख पा रहा? क्या मेरा अहंकार मुझे धोखा दे रहा है?" यह सवाल उठना ही अच्छी बात है। क्योंकि जब मन में यह संदेह जागता है, तो समझो कि परिवर्तन की शुरुआत हो रही है। अपने मन को दोष मत दो, बल्कि उसे समझो और प्यार दो।
📿 कृष्ण क्या कहेंगे...
"हे अर्जुन, जब तुम्हारा मन अहंकार से भर जाता है, तो वह तुम्हें अंधा कर देता है। परन्तु याद रखो, मैं तुम्हारे भीतर हूँ। जब भी तुम मेरी शरण में आओगे, मैं तुम्हें सत्य की ओर ले जाऊंगा। अपने अहंकार को छोड़कर, मुझसे जुड़ो, मैं तुम्हें तुम्हारी गलतियों को समझने और उन्हें सुधारने की शक्ति दूंगा।"
🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा
एक बार एक छात्र था जो अपनी परीक्षा में असफल हो गया। वह बहुत क्रोधित और अहंकारी था, सोचता था कि शिक्षक ने उसे गलत आंका है। उसकी आँखें अपनी गलतियों को देखने से बंद थीं। एक दिन एक बुजुर्ग ने उससे कहा, "जब सूरज तुम्हारे चेहरे पर चमकता है, तब क्या तुम अपनी परछाई देख पाते हो?" छात्र ने कहा, "नहीं।" बुजुर्ग बोले, "तुम्हारा अहंकार सूरज की तरह है, जो तुम्हें अपनी गलतियों की परछाई देखने से रोकता है। जब वह छंट जाएगा, तब तुम्हें सच्चाई दिखेगी।"
✨ आज का एक कदम
आज अपने मन में बैठकर शांति से पूछो: "क्या मेरा अहंकार मुझे सच देखने से रोक रहा है?" और एक छोटी सी प्रार्थना करो — "हे भगवान, मुझे अपनी गलतियाँ स्वीकारने की शक्ति दो।"
🧘 भीतर झांके कुछ क्षण
- क्या मैं अपने अहंकार को पहचान पा रहा हूँ?
- क्या मैं अपनी गलतियों को स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ?
अहंकार के बादल छंटेंगे, नई रोशनी आएगी
साधक, अहंकार हमें अपनी गलतियों से दूर कर सकता है, पर वह अंत नहीं है। जब तुम अपने भीतर की विनम्रता और सत्य की खोज में चलोगे, तब यह परदा हट जाएगा। याद रखो, हर अंधेरा प्रकाश की ओर ले जाता है। तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो, इस यात्रा को साथ में आगे बढ़ाएं।
शुभकामनाएँ! 🌸🙏