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कोई व्यक्ति व्यक्तिगत लाभ की इच्छा किए बिना कर्तव्य कैसे निभा सकता है?

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कोई व्यक्ति व्यक्तिगत लाभ की इच्छा किए बिना कर्तव्य कैसे निभा सकता है?

कर्तव्य बिना स्वार्थ के: सच्ची सेवा का मार्ग
प्रिय शिष्य,
जब हम अपने कर्मों को केवल व्यक्तिगत लाभ की इच्छा से जोड़ देते हैं, तब मन भ्रमित हो जाता है और कर्तव्य निभाने में असंतोष उत्पन्न होता है। परंतु जीवन का सार है—स्वार्थ से ऊपर उठकर, केवल अपने कर्तव्य का पालन करना। आइए, भगवद्गीता के प्रकाश में इस रहस्य को समझें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसंगः समाचर॥

(भगवद्गीता, अध्याय 3, श्लोक 9)
हिंदी अनुवाद:
हे कौन्तेय! इस संसार में कर्म बंधन का कारण है, यदि कर्म केवल यज्ञ (परहित) के लिए न हो। इसलिए, तू बिना आसक्ति के, केवल यज्ञ अर्थात सेवा के लिए कर्म कर।
सरल व्याख्या:
जब हम अपने कर्मों को केवल अपने स्वार्थ के लिए नहीं, बल्कि समाज, परिवार, और परमात्मा की सेवा के लिए करते हैं, तो कर्म बंधन नहीं बनता। यानि कर्म करने का उद्देश्य "स्वयं को लाभ पहुँचाना" नहीं, बल्कि "सेवा करना" होना चाहिए।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वार्थ से परे कर्म करें: कर्म का फल भगवान पर छोड़कर, केवल कर्म में लीन रहें।
  2. कर्तव्य को पूजा समझें: अपने कर्तव्य को ईश्वर की सेवा मानकर निभाएं।
  3. असंगता का अभ्यास करें: कर्म करते हुए फल की इच्छा न रखें, इससे मन शांत रहता है।
  4. सादगी अपनाएं: भौतिक लालसाओं से दूर रहकर सरल जीवन जिएं।
  5. समाज और धर्म की भावना रखें: कर्म का उद्देश्य केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज और धर्म की उन्नति के लिए हो।

🌊 मन की हलचल

"मैं कर्तव्य तो करता हूँ, पर मन में फल की लालसा क्यों नहीं जाती? क्या बिना स्वार्थ के कर्म करना संभव है? अगर मैं ऐसा कर पाऊं तो क्या मैं सच में मुक्त हो जाऊंगा?"
प्रिय, यह मन की स्वाभाविक आवाज है। स्वार्थ से ऊपर उठना आसान नहीं, पर संभव है। जब हम समझते हैं कि कर्म फल की चिंता छोड़कर, अपने हिस्से का कार्य करना है, तब मन धीरे-धीरे शांति पाता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, कर्म कर, फल की चिंता मत कर। क्योंकि कर्म ही जीवन है, और कर्म ही मुक्ति का मार्ग। जब तू अपने कर्म को मेरी भक्ति मानकर करता है, तब तेरा मन मुक्त हो जाता है। याद रख, मैं तेरा साथी हूँ, तेरे हर कर्म में।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक किसान था जो अपने खेत में बिना किसी स्वार्थ के, केवल अपने कर्तव्य के लिए काम करता था। वह न तो ज्यादा फसल की इच्छा रखता था, न ही दूसरों से तुलना करता था। वह केवल हर दिन अपने खेत को प्यार से सींचता और मेहनत करता। अंततः उसकी फसल बहुत अच्छी हुई, पर असली खुशी उसे अपने कर्म के प्रति निष्ठा से मिली। जैसे किसान बिना फल की चिंता किए खेत जोतता है, वैसे ही हम भी अपने कर्तव्य निभाएं।

✨ आज का एक कदम

आज अपने दैनिक कार्यों में से एक छोटा कार्य चुनें और उसे पूरी निष्ठा और बिना किसी फल की इच्छा के करें। देखें कैसे मन में हल्की सी शांति और संतोष उत्पन्न होता है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्मों को केवल फल की इच्छा से जोड़ता हूँ?
  • अगर मैं बिना किसी स्वार्थ के कर्म करूं, तो मेरा मन कैसा महसूस करता है?

🌼 कर्म की शुद्धि: सेवा का आनंद
प्रिय शिष्य,
जब कर्म से स्वार्थ हट जाता है, तब वह कर्म पूजा बन जाता है। तुम अकेले नहीं हो इस मार्ग पर। श्रीकृष्ण तुम्हारे साथ हैं, और गीता तुम्हें हर कदम पर सहारा देती है। चलो, आज से कर्म को सेवा और समर्पण की भावना से निभाएं, और जीवन को सरलता और शांति से भर दें।
शांति और प्रेम के साथ।

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