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करीबी दोस्तियों में ईर्ष्या को कैसे दूर करें?

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करीबी दोस्तियों में ईर्ष्या को कैसे दूर करें?

दोस्ती के बंधन में ईर्ष्या से मुक्त होने का सफर
साधक, जब हम अपने सबसे करीबी दोस्तों के बीच ईर्ष्या की भावना से जूझते हैं, तो यह हमारे मन के भीतर एक काँटा बन जाता है। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो; यह अनुभव मानवता का हिस्सा है। ईर्ष्या का जाल हमें अपने और दूसरों के बीच दूरियाँ पैदा करने देता है। आइए भगवद गीता के अमृत वचनों से इस उलझन को सुलझाएं और अपने मन को शांति की ओर ले चलें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो और न ही अपने कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
दोस्तों के बीच ईर्ष्या तब बढ़ती है जब हम उनके सफलता या खुशियों के फल को देखकर अपने आप को कमतर समझते हैं। यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें केवल अपने कर्म पर ध्यान देना चाहिए, न कि दूसरों के कर्मों के फलों से अपनी खुशी या दुख को जोड़ना चाहिए।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं पर भरोसा बढ़ाओ: अपनी योग्यता और गुणों को पहचानो, दूसरों की सफलता से अपनी तुलना मत करो।
  2. समानता का भाव अपनाओ: सभी जीवों में ईश्वर का अंश है, इसलिए किसी में श्रेष्ठता या हीनता का भाव न रखो।
  3. अहंकार को त्यागो: ईर्ष्या अक्सर अहंकार से जन्म लेती है; इसे कम करने का प्रयास करो।
  4. ध्यान और स्वाध्याय करो: अपने मन को नियंत्रित कर, ईर्ष्या जैसी नकारात्मक भावनाओं को दूर करो।
  5. सहृदयता और प्रेम बढ़ाओ: दोस्ती में प्रेम और करुणा का भाव बनाए रखो, जिससे ईर्ष्या समाप्त हो।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा, "मेरा दोस्त इतनी सफलता क्यों पा रहा है? क्या मैं कमतर हूँ?" या "क्या वह मेरी जगह को छीन रहा है?" यह भावनाएँ स्वाभाविक हैं, लेकिन इन्हें पहचानो और समझो कि ये तुम्हारे मन के भ्रम हैं, जो तुम्हें असली दोस्ती से दूर कर रहे हैं।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, देखो, हर मनुष्य की अपनी यात्रा है। किसी की चमक तुम्हारी छाँव को कम नहीं करती। अपने कर्मों में लग जाओ, बिना फल की चिंता किए। जब तुम अपने मन को शुद्ध कर लोगे, तब दोस्ती का बंधन और भी मजबूत होगा। ईर्ष्या को छोड़ो, प्रेम को अपनाओ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार दो दोस्त थे, जिनमें से एक तेज़ दौड़ता था और दूसरा थोड़ा धीमा। धीमे दोस्त को ईर्ष्या हुई कि मैं क्यों नहीं तेज़ हूँ। पर जब उसने समझा कि तेज़ दौड़ने वाला दोस्त अपनी मेहनत करता है और वह अपनी गति से खुश है, तो उसने भी अपनी गति में सुधार किया और दोनों ने मिलकर दौड़ का आनंद लिया। दोस्ती में भी ऐसा ही है — अपनी क्षमता के अनुसार प्रेम और सम्मान देना।

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी करीबी दोस्त की सफलता पर दिल से बधाई दो, बिना किसी तुलना के। इस छोटे से अभ्यास से तुम्हारे मन में प्रेम और ईर्ष्या से छुटकारा मिलेगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने मन में ईर्ष्या को पहचान सकता हूँ?
  • मैं अपने दोस्त की खुशियों को कैसे अपना बना सकता हूँ?

🌼 दोस्ती की मूरत में प्रेम का दीप जलाएं
ईर्ष्या के बादल छटेंगे, और तुम्हारी दोस्ती की आकाश में प्रेम का उजाला फैल जाएगा। याद रखो, सच्चे मित्र वही होते हैं जो एक-दूसरे की खुशियों में खुश रहते हैं। तुम्हारा मन शांत हो, और तुम्हारा हृदय प्रेम से भरा रहे — यही मेरी कामना है।
शुभकामनाएँ, मेरे साधक।

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