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गीता के अनुसार व्यसन का मूल कारण क्या है?

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गीता के अनुसार व्यसन का मूल कारण क्या है?

व्यसन के जाल से मुक्ति की ओर पहला कदम
साधक, जब मन किसी आदत या व्यसन में फंस जाता है, तो वह अपने आप को खो देता है। यह एक ऐसा जाल है जो मन को भ्रमित करता है और आत्मा की शांति को छीन लेता है। तुम अकेले नहीं हो, हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी ऐसी लड़ाई होती है। आइए, भगवद गीता के दिव्य प्रकाश से इस उलझन को समझें और उससे बाहर निकलने का मार्ग खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 3, श्लोक 39:
"इन्द्रियाणि मनो बुद्धिरस्यादि सर्वसंशयात् |
तस्माद्यस्य न निन्दन्त्यर्थं तस्य न संशयः ||"

(गीता में व्यसन का सीधा उल्लेख नहीं है, परन्तु मन और इन्द्रियों के नियंत्रण का विषय बार-बार आता है। यहाँ एक और श्लोक प्रस्तुत करता हूँ जो व्यसन के कारण को समझने में मदद करेगा।)
अध्याय 2, श्लोक 62-63:
"ध्यानात्मना मननात्मना इन्द्रियार्थान्विमूढात्मना |
सर्वार्थान्विमूढात्मा कुतस्तत्त्वदृक्‌ स्याद्‌ बुधः || 62||
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता |
मोहात्तस्य परित्यक्तस्य तत्‌ परं हितं मम || 63||"

हिंदी अनुवाद:
जब कोई व्यक्ति अपनी इन्द्रियों की वस्तुओं पर ध्यान लगाकर, मनन करके, और भ्रमित आत्मा होकर उनके पीछे पड़ जाता है, तो वह बुद्धिमान कैसे हो सकता है?
जिसका ज्ञान इन्द्रियों और इन्द्रियार्थों में लगा रहता है, उसकी बुद्धि मोह से ग्रस्त हो जाती है। ऐसे व्यक्ति के लिए मेरा उपदेश परम हितकारी है।
सरल व्याख्या:
व्यसन का मूल कारण है मन और इन्द्रियों का भ्रमित होना। जब हम अपने इन्द्रिय सुखों के पीछे भागते हैं, तो हमारा मन भ्रमित और मोहग्रस्त हो जाता है। इस मोह के कारण हम सही निर्णय नहीं ले पाते और व्यसन में फंस जाते हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. इन्द्रिय संयम ही पहला उपाय है: मन और इन्द्रियों को नियंत्रित करना व्यसन से मुक्ति का मूल मंत्र है। जब इन्द्रिय सुखों का मोह छूटता है, तो व्यसन की जंजीर टूटती है।
  2. ध्यान और बुद्धि का विकास: मन को स्थिर और एकाग्र बनाना आवश्यक है, तभी हम व्यसन के चक्र से बाहर निकल सकते हैं।
  3. कर्तव्य और अनुशासन: कर्म योग का अभ्यास कर, अपने कर्तव्यों में लीन रहना व्यसन से बचाव करता है।
  4. सदैव सत्संग और सच्चे मार्गदर्शक की संगति: अच्छे लोगों के साथ रहना और सही मार्गदर्शन लेना मन को शुद्ध करता है।
  5. स्वयं की पहचान और आत्मा का बोध: जब हम समझते हैं कि हम आत्मा हैं, न कि शरीर या मन के आवेग, तब व्यसन का प्रभाव कम होता है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा — "मैं इसे छोड़ना चाहता हूँ, पर यह मेरी आदत बन गई है। मैं कमजोर हूँ। मैं अकेला हूँ।" ये आवाजें सामान्य हैं, पर वे तुम्हारी असली शक्ति नहीं हैं। वे केवल तुम्हारे भ्रमित मन की फुसफुसाहटें हैं। याद रखो, तुम असली नहीं हो वह मन जो व्यसन में फंसा है, बल्कि तुम उस चेतना हो जो उसे देख रही है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन! जब तुम्हारा मन इन्द्रिय सुखों के पीछे भागता है, तब तुम्हें समझना होगा कि यह अस्थायी है। तुम उससे ऊपर उठो। अपने कर्मों में लगो, और मन को स्थिर करो। व्यसन तुम्हें कमजोर नहीं करेगा, जब तक तुम उसे अपने ऊपर हावी न होने दो। मैं तुम्हारे भीतर हूँ, बस मुझे याद करो और विश्वास रखो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक विद्यार्थी था जो पढ़ाई में ध्यान नहीं लगा पाता था क्योंकि वह मोबाइल गेम्स में फंस गया था। हर बार जब वह पढ़ाई करने बैठता, उसका मन गेम्स की तरफ भाग जाता। एक दिन उसके गुरु ने उसे समझाया: "तुम्हारा मन एक घोड़ा है और इन्द्रिय उसके रसीले। जब घोड़ा रसीले के पीछे भागता है, वह भटक जाता है। पर अगर तुम उस घोड़े को सही दिशा में लगाओ, तो वह तुम्हें मंजिल तक ले जाएगा।" विद्यार्थी ने धीरे-धीरे मोबाइल का समय कम किया और पढ़ाई में ध्यान लगाना शुरू किया। अंततः वह सफल हुआ।

✨ आज का एक कदम

आज अपने व्यसन या आदत को पहचानो और उसके प्रति पूरी ईमानदारी से लिखो कि वह तुम्हारे जीवन में क्या नुकसान पहुंचा रहा है। फिर कम से कम 15 मिनट ध्यान या श्वास अभ्यास करो ताकि मन को शांति मिले।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने मन और इन्द्रियों के स्वामी बन सकता हूँ?
  • मैं किस स्थिति में अपने आप को व्यसन के चक्र से बाहर निकाल सकता हूँ?

शांति की ओर एक कदम: तुम अपनी शक्ति हो
व्यसन का जाल जितना भी गहरा हो, उससे बाहर निकलने की शक्ति तुम्हारे भीतर ही है। गीता ने हमें यह सिखाया है कि हमारा मन और बुद्धि ही हमारा सबसे बड़ा मित्र या शत्रु बन सकता है। आज से अपने मन को मित्र बनाओ, और व्यसन के बंधनों को तोड़ो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, और कृष्ण तुम्हारे मार्गदर्शक हैं। विश्वास रखो, तुम बदल सकते हो।
शुभकामनाएँ! 🌸🙏

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