भीतर की शांति: अराजकता के बीच भी स्थिर रहने का मार्ग
साधक, जब बाहरी दुनिया में अराजकता का तूफान उठता है, तब भी मन के भीतर एक गहरा सागर शांत और स्थिर रह सकता है। यह संभव है, क्योंकि शाश्वत ज्ञान की वह ज्योति हमारे अंदर सदैव जलती रहती है। आइए, भगवद गीता की अमूल्य शिक्षाओं से इस अराजकता के समय में भी शांति पाने का मार्ग खोजें।
🕉️ शाश्वत श्लोक
योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
(अध्याय 2, श्लोक 48)
हे धनञ्जय! समत्व की अवस्था को योग कहते हैं, जिसमें व्यक्ति कर्म करते हुए भी कर्मों के फल की इच्छा या आसक्ति त्याग देता है और सफलता या असफलता में समान भाव रखता है।
सरल व्याख्या:
जब हम अपने कर्मों को बिना फल की चिंता किए करते हैं, तब हमारा मन स्थिर और शांत रहता है। यही योग की अवस्था है, जो अराजकता में भी हमें अडिग बनाती है।
🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन
- स्वयं पर नियंत्रण रखें: अराजकता में बाहरी परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, पर मन पर नियंत्रण रखना हमारा कर्तव्य है। गीता हमें सिखाती है कि मन की स्थिरता ही सच्ची शक्ति है।
- फल की चिंता त्यागें: अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से करें, लेकिन परिणाम की चिंता न करें। इससे मन की हलचल कम होगी।
- समान दृष्टि अपनाएं: सफलता और असफलता, सुख और दुख, सबको समान दृष्टि से देखें। इससे मन में द्वेष या मोह नहीं रहेगा।
- ध्यान और समाधि का अभ्यास करें: मन को एकाग्र करके ध्यान करने से भी आंतरिक शांति मिलती है।
- अपने धर्म का पालन करें: अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए निष्पक्ष बने रहें, इससे मन में स्थिरता आएगी।
🌊 मन की हलचल
"यह सब क्यों हो रहा है? मैं क्या करूँ? मेरा नियंत्रण कहाँ है?"
ऐसे सवाल मन में उठना स्वाभाविक है। पर याद रखिए, अराजकता के बीच भी हमारा मन एक दीपक की तरह जल सकता है, जो अंधकार को मिटाने का सामर्थ्य रखता है। अपने भीतर की आवाज़ को सुनिए, जो कहती है: "मैं शांत रह सकता हूँ, मैं स्थिर रह सकता हूँ।"
📿 कृष्ण क्या कहेंगे...
"हे अर्जुन, जब बाहर का संसार तूफान बने, तब भी अपने मन को समुद्र की तरह गहरा और शांत रखो। तू कर्मयोगी बन, फल की चिंता छोड़, और अपने धर्म के पथ पर अडिग चल। यही तेरी सबसे बड़ी विजय होगी।"
🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा
एक बार एक साधु नदी के किनारे खड़ा था। नदी में तेज़ बहाव था, और चारों ओर अराजकता मची हुई थी। एक बच्चे ने पूछा, "साधुजी, इस तेज़ बहाव में तुम कैसे शांत खड़े हो?" साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, "बच्चे, मैं नदी के बहाव को रोक नहीं सकता, पर मैं अपनी नाव को स्थिर रख सकता हूँ।"
ठीक वैसे ही, हम दुनिया की अराजकता को नहीं रोक सकते, पर अपने मन को स्थिर रखना हमारे हाथ में है।
✨ आज का एक कदम
आज के दिन, जब भी अराजकता महसूस हो, गहरी सांस लें और अपने मन से कहें:
"मैं अपने कर्म करता हूँ, फल की चिंता छोड़ता हूँ। मेरा मन शांत और स्थिर है।"
🧘 भीतर झांके कुछ क्षण
- क्या मैं अपने कर्मों को बिना फल की चिंता किए कर पा रहा हूँ?
- मेरी मन की स्थिरता कितनी मजबूत है जब बाहर की दुनिया उलझन में हो?
शांति की ओर एक कदम
साधक, याद रखो, शांति बाहर नहीं, भीतर है। अराजकता के बीच भी जब तुम अपने मन को योग की अवस्था में ले जाओगे, तब संसार की कोई भी हलचल तुम्हें विचलित नहीं कर पाएगी। यह तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति है।
शांति और स्थिरता के इस पथ पर मैं सदैव तुम्हारे साथ हूँ।
ॐ शांति: शांति: शांति: 🙏