भय के सागर में डूबे नहीं, बल्कि सागर को पार करें
साधक, जब मन में अनावश्यक भय और अविवेक की छाया छा जाती है, तो लगता है जैसे जीवन की राहें धुंधली हो गई हों। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो—यह अनुभव हर मानव के मन में कभी न कभी आता है। भगवद गीता में ऐसे भय और भ्रम को दूर करने का जो अमृतमयी संदेश है, उसे समझना तुम्हारे लिए प्रकाश का दीपक बनेगा।
🕉️ शाश्वत श्लोक
धृतराष्ट्र उवाच:
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते |
धृष्टद्युम्नोऽन्यः पाण्डवेषु तिष्ठति धनञ्जय || 1-40 ||
अर्थ:
धर्मयुक्त युद्ध से उत्तम कोई अन्य श्रेष्ठ कार्य नहीं है, हे क्षत्रिय। पांडवों में धृष्टद्युम्न के समान वीर दूसरा कोई नहीं है।
श्लोक जो भय और अविवेक पर प्रकाश डालता है:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:
"भयाद्रोगेभ्यश्च जयते शत्रुवत्सलता।"
(गीता 2.56 का भावार्थ)
अर्थ:
अविवेक और भय से मन रोगी हो जाता है, और यह मन शत्रु की तरह शत्रुता करता है।
🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन
- भय मन का रोग है, ज्ञान उसका औषधि है। जब मन में ज्ञान आता है, तो अविवेक और भय अपने आप दूर हो जाते हैं।
- कर्तव्य पथ पर अडिग रहना ही भय को दूर करता है। जैसे अर्जुन ने युद्धभूमि में अपने कर्तव्य का निर्वाह किया।
- संकटों में स्थिरचित्त रहना, मन को स्थिरता देता है। स्थिरचित्तता से भय की लहरें टूट जाती हैं।
- आत्मा अविनाशी है, मृत्यु और भय केवल शरीर के लिए हैं। यह समझ मन को स्थिरता और साहस देती है।
- भगवान की शरण में आने से भय और अविवेक का नाश होता है। उन्हें स्मरण करो, वे तुम्हारे साथ हैं।
🌊 मन की हलचल
प्रिय मित्र, तुम्हारा मन कह रहा है—"क्या मैं सक्षम हूँ? क्या यह भय मुझे कभी छोड़ देगा? क्या मैं सही निर्णय ले पाऊंगा?" यह सब सामान्य है। भय का अर्थ है असमंजस, और असमंजस तब आता है जब मन में स्पष्टता नहीं होती। पर याद रखो, भय की आवाज़ को सुनो, पर उस पर हावी मत होने दो। उसे समझो, उसके पीछे छुपे अनिश्चितता और असुरक्षा को पहचानो।
📿 कृष्ण क्या कहेंगे...
"हे अर्जुन, जब तुम्हारा मन भ्रमित और भयभीत हो, तब मुझमें आसरा लो। मैं तुम्हें ज्ञान दूंगा, जो अंधकार को दूर करेगा। भय से मत घबराओ, क्योंकि तुम आत्मा के साक्षी हो, जो न कभी जन्मता है, न मरता है। अपने कर्तव्य का पालन करो, और मुझ पर विश्वास रखो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम अकेले नहीं।"
🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा
सोचो एक नौजवान छात्र परीक्षा के दिन अपने मन में भय और चिंता से ग्रसित है। वह सोचता है, "क्या मैं सफल हो पाऊंगा?" पर तभी उसे याद आता है कि उसने दिन-रात मेहनत की है। वह गहरी सांस लेकर अपने गुरु के बताए हुए मंत्र को दोहराता है—"मैं अपने प्रयासों का फल स्वीकार करता हूँ, भय को छोड़ता हूँ।" और वह परीक्षा कक्ष में बैठकर अपने ज्ञान को प्रकट करता है। भय उसके मन से दूर हो गया क्योंकि उसने अविवेक को ज्ञान से परास्त कर दिया।
✨ आज का एक कदम
आज अपने मन में उठने वाले भय को पहचानो, उसे लिखो। फिर उस भय के सामने एक सवाल रखो—"क्या यह भय वास्तविक है या केवल मेरी कल्पना?" इस अभ्यास से तुम्हारा मन स्पष्ट होगा और भय कम होगा।
🧘 भीतर झांके कुछ क्षण
- क्या मेरा भय वर्तमान में किसी वास्तविक खतरे से जुड़ा है?
- मैं अपने भय को दूर करने के लिए क्या कदम उठा सकता हूँ?
भय से परे, विश्वास की ओर
साधक, याद रखो, भय और अविवेक मन के बादल हैं, जो ज्ञान और विश्वास की धूप से छंट जाते हैं। तुममें वह शक्ति है जो इन बादलों को हरा सकती है। गीता का प्रकाश तुम्हारे पथ को उज्जवल करेगा। चलो, एक साथ उस प्रकाश की ओर बढ़ें।
शुभकामनाएँ और सदा तुम्हारे साथ हूँ।