मन की जंग में कृष्ण का स्नेहिल आशीर्वाद
प्रिय शिष्य, जब मन की बेचैनी और इच्छाओं की उलझन हमें घेर लेती है, तब लगता है जैसे हम खुद से दूर हो रहे हैं। पर जान लो, तुम अकेले नहीं हो। हर मनुष्य के भीतर यह लड़ाई चलती है — मन को जीतना, उसे अपने वश में करना। श्रीकृष्ण ने गीता में इस विषय पर जो अमूल्य ज्ञान दिया है, वह आज भी हमारे लिए दीपस्तंभ बन सकता है।
🕉️ शाश्वत श्लोक
अध्याय 6, श्लोक 5
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥
हिंदी अनुवाद:
अपने आत्मा को उठाओ, अपने आत्मा को ही न गिराओ। क्योंकि आत्मा ही अपने लिए मित्र है और आत्मा ही अपने लिए शत्रु है।
सरल व्याख्या:
मन और आत्मा दोनों हमारे अंदर हैं। यदि हम अपने मन को समझकर और नियंत्रित करके आत्मा की दोस्ती करें, तो वही हमारे सबसे बड़े समर्थक बन जाते हैं। पर यदि हम मन को अनियंत्रित छोड़ दें, तो वही हमारा सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है।
🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन
- मन को समझो, उससे लड़ो नहीं। मन की इच्छा और बेचैनी को नकारने से मन और अधिक अस्थिर होता है। उसे समझो, उसकी प्रकृति जानो।
- निर्विकार होकर कर्म करो। फल की इच्छा छोड़कर कर्म करने से मन शांत होता है।
- अहंकार से ऊपर उठो। जब हम अपने मन को 'मैं' और 'मेरा' से अलग देखते हैं, तब मन पर नियंत्रण संभव होता है।
- ध्यान और योग का अभ्यास करो। मन को एकाग्र करने की प्रक्रिया से मन की उलझनें कम होती हैं।
- सर्वत्र ईश्वर का स्मरण रखो। जब मन ईश्वर में लगा रहता है, तब वह स्वाभाविक रूप से शांत हो जाता है।
🌊 मन की हलचल
तुम कह रहे हो, “मन मेरा नहीं सुनता, वह बार-बार अपनी मर्जी करता है। मैं चाहकर भी उसे नियंत्रित नहीं कर पाता।” यह स्वाभाविक है। मन एक नदी की तरह है, जो बहती रहती है। उसे रोकना नहीं, बल्कि सही दिशा देना सीखो। उसी नदी में अगर पत्थर डालो तो वह उग्र हो जाती है, लेकिन अगर पत्थर को सही जगह पर रखो तो वह मार्ग बन जाती है।
📿 कृष्ण क्या कहेंगे...
"हे प्रिय, मन तुम्हारा सबसे बड़ा साथी हो सकता है या सबसे बड़ा विरोधी। उसे अपने वश में करो, उसे अपने मित्र बनाओ। जब तुम मन को अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि अपनी समझ से चलाओगे, तभी तुम सच्ची आज़ादी पाओगे। याद रखो, मन पर विजय पाने वाला ही संसार पर विजय पाता है।"
🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा
एक बार एक साधु नदी किनारे बैठा था। पास ही एक बच्चा पत्थर फेंक रहा था। पत्थर पानी में गिरते ही छपाक करता था, और नदी की सतह पर घेरे बन जाते थे। साधु ने बच्चे से कहा, "यदि तुम पत्थर को धीरे से डालो तो पानी शांत रहेगा।" बच्चा बोला, "कैसे?" साधु ने समझाया, "मन भी ऐसा ही है। जब तुम उसे क्रोध या लालसा से उछालते हो, तो वह अशांत हो जाता है। लेकिन जब तुम उसे संयम और समझ से संभालते हो, तो मन शांत और स्थिर रहता है।"
✨ आज का एक कदम
आज अपने मन की एक छोटी सी इच्छा को पहचानो। उसे बिना जज किए स्वीकार करो और फिर सोचो, क्या वह इच्छा तुम्हारे लिए लाभकारी है या केवल क्षणिक तृप्ति? उस इच्छा को समझदारी से संभालने का प्रयास करो।
🧘 अंदर झांके कुछ क्षण
- क्या मैं अपने मन को अपने सबसे बड़े मित्र के रूप में देख पा रहा हूँ?
- मेरी कौन सी इच्छा मुझे सबसे ज्यादा बेचैन करती है, और मैं उसे कैसे समझ सकता हूँ?
मन की विजय की ओर पहला कदम
तुम्हारे भीतर वह शक्ति है जो मन को जीत सकती है। बस धैर्य और समझ के साथ उस शक्ति को जागृत करो। श्रीकृष्ण का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, और हर दिन वह तुम्हें मन की शांति की ओर एक कदम और बढ़ने का अवसर देता है। याद रखो, यह यात्रा अकेली नहीं, बल्कि प्रेम और प्रकाश से भरी है।
शुभकामनाएँ, मेरे प्रिय शिष्य। 🌺🙏