लगाव से मुक्त प्रेम की ओर — प्रेम की सच्ची स्वतंत्रता
प्रिय शिष्य,
तुम्हारे मन में यह उलझन है कि कैसे हम अपने प्यार को बनाए रखें, पर उसी के साथ लगाव को त्याग दें। यह सचमुच एक गहन प्रश्न है, क्योंकि प्रेम और लगाव अक्सर साथ-साथ चलते हैं। परंतु गीता हमें सिखाती है कि प्रेम का सच्चा स्वरूप वह है जो स्वतंत्र और निःस्वार्थ हो। आइए, इस रहस्य को समझें।
🕉️ शाश्वत श्लोक
अध्याय 12, श्लोक 13-14
(भगवद् गीता 12.13-14)
"अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च।
निर्ममो निरहङ्कारः समदुःखसुखः क्षमी॥
सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्मामेति पाण्डव॥"
हिंदी अनुवाद:
जो सभी प्राणियों के प्रति द्वेष नहीं रखता, जो मैत्रीपूर्ण और करुणामय है, जो निःस्वार्थ है और अहंकार से मुक्त है, जो सुख-दुःख में सम है, जो क्षमाशील है, जो सदा संतुष्ट रहता है, जो दृढ़ निश्चयी योगी है, जिसकी बुद्धि मुझमें लगी रहती है, वही मुझ तक पहुँचता है।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि सच्चा प्रेम द्वेष, अहंकार और स्वार्थ से मुक्त होता है। प्रेम तब शुद्ध होता है जब वह करुणा, मैत्री और समभाव से भरा हो। जब हम अपने प्रेम में लगाव और स्वार्थ को त्याग देते हैं, तभी वह प्रेम परमात्मा के समीप ले जाता है।
🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन
- स्वयं में निष्ठा और समभाव रखो — प्रेम का अर्थ है समभाव, न कि स्वार्थी लगाव। जो सुख-दुख में समान भाव रख सके, वही प्रेम सच्चा है।
- आत्मा की पहचान करो — प्रेम को अपनी आत्मा की अभिव्यक्ति समझो, न कि केवल बाहरी वस्तु या व्यक्ति से जुड़ा लगाव।
- निःस्वार्थ भाव से प्रेम करो — प्रेम में स्वार्थ और अपेक्षा न रखो, क्योंकि वे लगाव के बीज हैं।
- अहंकार को त्यागो — प्रेम में अहंकार का प्रवेश लगाव को जन्म देता है। अहंकार त्याग कर प्रेम को स्वतंत्र करो।
- ईश्वर में समर्पण करो — अपने प्रेम को ईश्वर को समर्पित कर दो, तब वह प्रेम पवित्र और मुक्त हो जाएगा।
🌊 मन की हलचल
तुम सोच रहे हो, "मैं प्यार तो करता हूँ, पर जब लगाव नहीं रहेगा तो क्या वह प्यार अधूरा नहीं होगा?" यह स्वाभाविक है। हमारा मन सुरक्षा चाहता है, स्थिरता चाहता है। परंतु लगाव की जंजीरें ही हमें बंधन में डालती हैं। प्रेम और लगाव को अलग करना सीखना, अपने मन को एक नई आज़ादी देना है। यह कठिन है, पर असंभव नहीं।
📿 कृष्ण क्या कहेंगे...
"हे प्रिय शिष्य, प्रेम वह है जो मुक्त करता है, बंधन नहीं। जब तुम मुझसे प्रेम करते हो, तो मैं तुम्हारे हर लगाव को तुम्हारे लिए बोझ नहीं बनने देता। प्रेम में समर्पण और विश्वास होता है, न कि पकड़ और नियंत्रण। इसलिए, अपने प्रेम को मुझमें समर्पित करो, मैं तुम्हें लगाव की जंजीरों से मुक्त कर दूंगा। तब तुम सच्चे प्रेम का अनुभव करोगे।"
🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा
एक बार एक विद्यार्थी अपने गुरु से बोला, "गुरुजी, मैं अपने मित्र से बहुत प्यार करता हूँ, पर मुझे उससे अलग होने का भय भी है। मैं लगाव छोड़ना चाहता हूँ, पर प्यार कैसे जारी रखूं?" गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, "देखो, जैसे सूरज हर दिन निकलता है और अपनी किरणें देता है, पर वह किसी पेड़ या फूल से चिपका नहीं रहता, वैसे ही प्रेम करो। प्रेम करो बिना पकड़ के, बिना अपेक्षा के। सूरज की तरह स्वतंत्र प्रेम ही सच्चा प्रेम है।"
✨ आज का एक कदम
आज अपने प्रेम के उस भाव को पहचानो जहाँ तुम स्वार्थ या नियंत्रण की इच्छा महसूस करते हो। उसे शांतिपूर्वक स्वीकारो और उसे ईश्वर के हाथों में सौंप दो। यह अभ्यास लगाव को कम करने की दिशा में पहला कदम है।
🧘 भीतर झांके कुछ क्षण
- क्या मेरा प्रेम स्वार्थ से मुक्त है?
- मैं अपने प्रेम में लगाव को कैसे पहचान सकता हूँ?
- मुझे प्रेम में स्वतंत्रता देने का क्या अर्थ समझ आता है?
प्रेम की स्वतंत्रता — जीवन का परम उपहार
प्रिय शिष्य, याद रखो, प्रेम वह फूल है जो तभी खिलता है जब उसे पकड़ नहीं बल्कि आज़ादी दी जाती है। अपने दिल को खोलो, लगाव की जंजीरों को धीरे-धीरे छोड़ो और प्रेम को मुक्त रूप में जीना सीखो। यही गीता का संदेश है और यही जीवन का सार है।
शुभकामनाएँ,
तुम्हारा गुरु