आलस्य के अंधकार से कर्म के प्रकाश की ओर
साधक, जब मन आलस्य और टालमटोल की जाल में फंसता है, तो जीवन के सुनहरे अवसर धुंधलाने लगते हैं। यह एक सामान्य अनुभूति है, जिसे हर व्यक्ति कभी न कभी अनुभव करता है। लेकिन याद रखो, गीता हमें सिर्फ कर्म करने का ही नहीं, बल्कि आलस्य को पार कर सक्रियता की ओर बढ़ने का भी मार्ग दिखाती है। तुम अकेले नहीं हो, यह लड़ाई हम सबके भीतर चलती है। चलो, इस अंधकार से निकलने का रास्ता मिलकर खोजते हैं।
🕉️ शाश्वत श्लोक
अध्याय 3, श्लोक 8
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥
नियत रूप से कर्म करते रहो, क्योंकि कर्म करना अकर्म करने से श्रेष्ठ है। शरीर की यह यात्रा भी कर्म के बिना सफल नहीं होती।
सरल व्याख्या:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि कर्म करना हमारा धर्म है। आलस्य और टालमटोल छोड़कर, हमें अपने कर्तव्य का पालन निरंतर करना चाहिए। निष्क्रियता से कुछ भी प्राप्त नहीं होता, और जीवन की यात्रा भी कर्म के बिना पूरी नहीं होती।
🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन
- कर्म ही जीवन है: कर्म से भागना संभव नहीं, आलस्य में फंसे रहना जीवन की गति को रोकना है।
- नियतता से कर्म करो: जो काम तुम्हारे सामने है, उसे नियमित और समर्पित भाव से करो।
- परिणाम की चिंता मत करो: कर्म करो, फल की चिंता छोड़ो, इससे मन हल्का और सक्रिय रहेगा।
- आत्म-नियंत्रण से आलस्य दूर होता है: मन को नियंत्रित करके आलस्य का मुकाबला किया जा सकता है।
- स्वयं को प्रेरित करो: अपने उद्देश्य को याद रखो, जो तुम्हें कर्म के पथ पर बनाए रखेगा।
🌊 मन की हलचल
तुम सोच रहे हो, "क्यों इतनी ऊर्जा नहीं होती? क्यों मैं टालमटोल करता रहता हूँ? क्या मैं कभी सक्रिय हो पाऊंगा?" यह सवाल तुम्हारे मन की आवाज़ हैं, जो तुम्हें सचेत कर रही हैं। यह ठीक है, क्योंकि जागरूकता ही पहला कदम है। आलस्य में फंसे रहना कोई कमजोरी नहीं, पर उससे बाहर निकलना तुम्हारे हाथ में है।
📿 कृष्ण क्या कहेंगे...
"हे अर्जुन, देखो, कर्म ही तुम्हारा साथी है। आलस्य को छोड़ो, क्योंकि वह तुम्हें कमजोर बनाता है। तुम्हारा शरीर, मन और आत्मा कर्म से ही जीवित हैं। कर्म करो, निरंतर करो, चाहे मन करे या न करे। यही तुम्हारा सच्चा धर्म है। मैं तुम्हारे साथ हूँ, बस तुम्हें कदम बढ़ाना है।"
🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा
एक बार एक विद्यार्थी था जो परीक्षा की तैयारी टालता रहता था। हर बार सोचता, "कल से शुरू करूंगा," लेकिन कल कभी आता ही नहीं। जब उसने अपने गुरु से पूछा, "गुरुजी, मैं आलसी क्यों हूँ?" गुरु ने कहा, "देखो, नदी के पानी की तरह तुम्हारा समय बह रहा है। यदि तुम उसे रोकने की कोशिश करोगे, तो वह गंदा हो जाएगा। लेकिन यदि तुम उसे सही दिशा में बहने दोगे, तो वह साफ और उपयोगी बन जाएगा। कर्म को टालना नदी को रोकने जैसा है, जो संभव नहीं।" उस दिन से विद्यार्थी ने धीरे-धीरे नियमित अध्ययन शुरू किया और सफल हुआ।
✨ आज का एक कदम
आज अपने दिन के लिए एक छोटा सा कर्म तय करो — वह कोई भी हो, जैसे 10 मिनट पढ़ाई करना, घर के काम में हाथ बंटाना या सुबह थोड़ा व्यायाम करना। इसे टालो मत, अभी करो। यह छोटा कदम आलस्य की जंजीरों को तोड़ने की शुरुआत है।
🧘 भीतर झांके कुछ क्षण
- क्या आज मैं अपने आलस्य को पहचान पा रहा हूँ?
- मैं किस छोटे से कर्म से अपनी सक्रियता शुरू कर सकता हूँ?
कर्म की ओर बढ़े कदम — आलस्य को पीछे छोड़ो
साधक, हर क्षण नया अवसर है कर्म करने का। आलस्य के बादल चाहे जितने घने हों, कर्म के प्रकाश से वे छंट जाएंगे। याद रखो, तुम स्वयं अपने जीवन के निर्माता हो। उठो, जागो और कर्म करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शुभकामनाएँ और प्रेम सहित।