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कृष्ण क्यों कहते हैं कि कर्म अकर्म से श्रेष्ठ है?

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कृष्ण क्यों कहते हैं कि कर्म अकर्म से श्रेष्ठ है?

कर्म की महिमा: जब करना ही जीवन की राह बन जाए
साधक, जीवन में अक्सर हम सोचते हैं कि अगर हम कुछ न करें तो शायद समस्याएँ भी न आएँ। पर क्या सचमुच निष्क्रिय रहना ही समाधान है? भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कर्म और अकर्म की इस उलझन को बड़ी गहराई से समझाया है। आइए, इस रहस्य को मिलकर खोलें।

🕉️ शाश्वत श्लोक: कर्म और अकर्म का विवेक

अध्याय 3, श्लोक 4
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥

हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! नित्य कर्म करते रहो, क्योंकि कर्म करना अकर्म करने से श्रेष्ठ है। शरीर की यह यात्रा भी कर्म के बिना संभव नहीं है।
सरल व्याख्या:
कर्म करना जीवन का स्वाभाविक नियम है। निष्क्रिय रहना यानी अकर्म, शरीर और मन को स्थिर नहीं रहने देता; इसलिए कर्म करते रहना ही श्रेष्ठ है। कर्म से ही जीवन चलता है, और कर्म से हम अपनी नियति को आकार देते हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. जीवन का प्रवाह कर्म से जुड़ा है — हम चाहे कुछ करें या न करें, हमारा शरीर और मन कर्म करते ही रहते हैं। इसलिए सक्रिय और सही कर्म करना बेहतर है।
  2. अकर्म का भ्रम — निष्क्रियता से मुक्ति नहीं मिलती, बल्कि यह अनजाने में बंधन बढ़ाती है। कर्म करना ही मुक्तिदायक है।
  3. कर्म का फल छोड़ देना — कर्म करो, पर फल की चिंता न करो, यही गीता का संदेश है। इससे मन शांति पाता है।
  4. स्वधर्म का पालन — अपने स्वभाव और कर्तव्य के अनुसार कर्म करना ही सर्वोत्तम है।
  5. अंतर्निहित चेतना का जागरण — कर्म से हम अपने भीतर के दिव्य तत्व को जागृत करते हैं।

🌊 मन की हलचल:

"अगर मैं कुछ न करूँ तो क्या सब ठीक हो जाएगा? क्या मेरी मेहनत व्यर्थ नहीं जाएगी? क्या कर्म करने से मुझे सच में शांति मिलेगी?"
यह सवाल स्वाभाविक हैं। लेकिन याद रखो, कर्म से ही तुम्हारा मन और जीवन सशक्त होता है। निष्क्रियता से डर और उलझन बढ़ती है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय अर्जुन, कर्म से भागना नहीं। कर्म को अपने मित्र बनाओ। कर्म तुम्हारा अस्त्र है, और तुम्हारा मार्गदर्शक भी। जब तुम कर्म करते हो, तो मैं तुम्हारे साथ हूँ। इसलिए निश्चिंत होकर कर्म करो, फल की चिंता किए बिना। यही मुक्ति का मार्ग है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक नदी के किनारे दो किसान थे। एक दिन भारी बारिश हुई, और नदी का पानी बढ़ गया। पहला किसान डर के मारे खेत छोड़कर भाग गया, दूसरा किसान अपने खेत की रक्षा में लगा रहा। बारिश के बाद, दूसरा किसान के खेत में फसल अच्छी हुई, जबकि पहला किसान के खेत में सब नष्ट हो गया। निष्क्रियता ने पहले किसान को नुकसान पहुँचाया, जबकि कर्म ने दूसरे को फल दिया।

✨ आज का एक कदम

आज अपने दैनिक कार्यों में पूरी लगन और ईमानदारी से जुट जाओ। चाहे वह पढ़ाई हो, काम हो या घर के काम, पूर्ण मनोयोग से करो। फल की चिंता छोड़ दो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्मों से भाग तो नहीं रहा हूँ?
  • मैं अपने कर्मों में कितनी निष्ठा और समर्पण लाता हूँ?

कर्म ही जीवन की असली पूजा है
तुम अकेले नहीं हो, हर जीव इसी कर्म के जंजाल में उलझा है। लेकिन याद रखो, कर्म से ही जीवन का सार है, और कर्म से ही मुक्ति का द्वार खुलता है। अपने कर्मों को प्रेम और श्रद्धा से करो, और जीवन को सुंदर बनाओ।
शुभकामनाएँ,
तुम्हारा आध्यात्मिक गुरु

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