अपने कर्तव्य और अंतर्ज्ञान के बीच: एक आत्मीय संवाद
साधक, यह प्रश्न तुम्हारे जीवन की गहराई से जुड़ा है — जब मन उलझन में हो कि क्या मैं अपने धर्म से दूर हो रहा हूँ या अपने अंतर्मन की आवाज़ सुन रहा हूँ। यह भ्रम बहुत सामान्य है, क्योंकि जीवन के रास्ते कभी स्पष्ट नहीं होते। परंतु याद रखो, तुम अकेले नहीं हो; हर खोजी मन इसी द्वंद्व से गुजरता है।