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प्रतिस्पर्धा: ईर्ष्या या प्रेरणा — चलो साथ में समझें
साधक, जीवन में जब हम दूसरों से तुलना करते हैं, तो मन में कई भाव उभरते हैं — कभी प्रेरणा, कभी ईर्ष्या। यह उलझन स्वाभाविक है। तुम अकेले नहीं हो, हर कोई इस द्वंद्व से गुजरता है। आइए, गीता के दिव्य प्रकाश में इस प्रश्न का उत्तर खोजें।

ईर्ष्या: अज्ञान की छाया से निकलने की राह
साधक, जब मन में ईर्ष्या की आग जलती है, तो यह एक गहरा संकेत होता है कि हमारे अंदर कहीं कोई अधूरी समझ या भ्रम है। ईर्ष्या केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक प्रकार का अज्ञान है जो हमें अपने और दूसरों के बीच की सच्चाई से दूर कर देता है। आइए, भगवद् गीता के दिव्य प्रकाश में इस प्रश्न का उत्तर खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येत मतं मम।।

(भगवद् गीता 3.37)

ईर्ष्या के बादल छंटेंगे — चलो शांति की ओर कदम बढ़ाएं
प्रिय शिष्य, यह सच है कि जब हम अपने आसपास के लोगों की सफलता देखते हैं, तो कभी-कभी मन में ईर्ष्या का भाव उठना स्वाभाविक है। यह भाव हमें कमजोर या दोषी नहीं बनाता, बल्कि यह हमारी मानवीय संवेदनाओं का हिस्सा है। सबसे पहले, अपने आप को यह समझने का अवसर दें कि यह भावना आती है, पर इसका अर्थ यह नहीं कि हम उससे पराजित हों। आइए, भगवद गीता के प्रकाश में इस उलझन को सुलझाएं।

दिल के बंधनों में ईर्ष्या से मुक्ति का रास्ता
साधक,
जब हम अपने निकटतम संबंधों में ईर्ष्या की भावना को महसूस करते हैं, तो यह हमारे मन को भीतर से बेचैन कर देता है। यह भावना न केवल हमारे मन को दुखी करती है, बल्कि हमारे रिश्तों में दूरी भी पैदा करती है। परंतु जान लो, तुम अकेले नहीं हो। यह मानवीय स्वभाव का एक हिस्सा है, जिसे समझकर और भगवद गीता के अमूल्य उपदेशों से सीख लेकर हम इससे मुक्त हो सकते हैं।

जलन की वेदना: तुम अकेले नहीं हो
साधक, यह भावना कि कोई मुझसे बेहतर कर रहा है और उससे जलन होना, मानव मन का स्वाभाविक हिस्सा है। यह तुम्हारे भीतर छिपी हुई इच्छा, असुरक्षा और अहंकार का प्रतिबिंब है। यह समझना जरूरी है कि जलन स्वयं में एक संकेत है—अपने आप से जुड़ने का, अपनी क्षमताओं को पहचानने का और अपने भीतर छुपी शक्ति को जगाने का।

ईर्ष्या और तुलना के जाल से निकलने का मार्ग
प्रिय शिष्य, जब मन में ईर्ष्या और तुलना की आग जलने लगती है, तो वह भीतर के शांत सरोवर को अशांत कर देती है। तुम अकेले नहीं हो; यह मानवीय प्रवृत्ति है, परंतु भगवद गीता हमें सिखाती है कि इस जाल से कैसे मुक्त होना है। आइए, मिलकर गीता की अमृत वाणी से इस उलझन को समझते हैं।