क्रोध और घृणा के बोझ में फंसे मत रहो
साधक, जब मन में क्रोध और घृणा के बादल छाए हों, तो यह समझना ज़रूरी है कि ये भाव हमारे कर्मों के बीज हैं, जो भविष्य में हमें अपने ही किए का फल देते हैं। तुम अकेले नहीं हो, हर इंसान के मन में कभी न कभी ये भाव आते हैं, लेकिन गीता हमें सिखाती है कि इन भावों को समझदारी से कैसे संभालना है।