boundaries

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Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

भावनात्मक थकावट से उबरने का रास्ता: आत्मा की शांति की ओर
साधक, जब हम दूसरों की भावनाओं, उम्मीदों और प्रतिक्रियाओं के जाल में उलझ जाते हैं, तो हमारा मन थक जाता है, ऊर्जा खत्म हो जाती है। यह थकावट केवल शारीरिक नहीं, बल्कि गहरी भावनात्मक होती है। लेकिन याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। जीवन के इस संघर्ष में भगवद गीता तुम्हारे साथ है, जो तुम्हें सिखाती है कैसे अपने भीतर की शक्ति को पहचानो और दूसरों के बोझ से मुक्त रहो।

दयालुता का सच्चा स्वर: बिना इस्तेमाल हुए भी प्रेम कैसे निभाएं?
साधक, रिश्तों की दुनिया में दयालुता रखना एक सुंदर गुण है, लेकिन जब हमें लगता है कि हमारा प्रेम या दया केवल इस्तेमाल करने के लिए है, तब मन में पीड़ा और संशय जन्म लेता है। यह स्वाभाविक है कि आप इस उलझन में हैं कि कैसे बिना खुद को खोए, बिना इस्तेमाल हुए भी दयालु और प्रेमपूर्ण बने रहें। आइए, भगवद गीता की अमृत वाणी से इस प्रश्न का उत्तर खोजें।

रिश्तों की मधुर सीमाएँ: प्यार में भी अपनी जगह बनाना
साधक, रिश्तों की दुनिया में जब हम प्रेम और अपनापन महसूस करते हैं, तब अक्सर यह उलझन होती है कि अपनी पहचान और सीमाएँ कैसे बनाए रखें ताकि न तो प्यार कम हो और न ही आत्मसम्मान। यह प्रश्न बहुत गहरा है और इसका समाधान भगवद गीता में भी मिलता है। आइए, मिलकर इस रहस्य को समझें।

विषैले संबंधों से मुक्ति का मार्ग: तुम अकेले नहीं हो
प्रिय मित्र, जब हम विषैले संबंधों में फंस जाते हैं, तब मन घुटता है, आत्मा थक जाती है और जीवन का प्रकाश मंद पड़ने लगता है। यह समझना जरूरी है कि तुम अकेले नहीं हो, हर कोई कभी न कभी ऐसे अनुभवों से गुजरता है। चलिए, गीता के अमूल्य ज्ञान से हम इस उलझन का समाधान खोजते हैं।

प्रेम की सीमाएँ: क्या गीता कहती है?
प्रिय मित्र, प्रेम एक सुंदर अनुभूति है, जो हमारे हृदय को खोलती है और जीवन को अर्थ देती है। परंतु जब प्रेम में सीमाएँ आती हैं, तो मन उलझन में पड़ जाता है—क्या प्रेम की कोई हद होती है? क्या सीमाएँ प्रेम को कमजोर करती हैं या उसे संरक्षित करती हैं? चलिए, गीता के अमृत शब्दों से इस प्रश्न का उत्तर खोजते हैं।

दिल से दिल तक: बिना चोट खाए बिना शर्त प्यार की राह
साधक, प्यार वह मधुर अनुभूति है जो हमारे मन और आत्मा को जोड़ती है। परंतु जब हम बिना शर्त प्यार करने की बात करते हैं, तो अक्सर डर लगता है—क्या मैं फिर भी आहत नहीं होऊंगा? क्या मेरा दिल टूटेगा? यह सवाल बहुत स्वाभाविक है। आइए, गीता के दिव्य प्रकाश में इस उलझन को सुलझाएं।

आत्मविश्वास और अहंकार: दो अलग राहें, समझ की ज़रूरत
साधक,
तुम्हारा यह प्रश्न बहुत गहरा है। अक्सर हम सोचते हैं कि आत्मविश्वास और अहंकार एक जैसे हैं, क्योंकि दोनों में 'मैं' का भाव होता है। परंतु वे बिल्कुल भिन्न हैं। चलो, इस भ्रम को भगवद् गीता के प्रकाश में समझते हैं।