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अपमानों के बीच भी अटल रहना — सच्ची शक्ति का रहस्य
साधक,
जब अपमानों की आग हमारे मन को झुलसा रही हो, तब लगता है कि शक्ति का अर्थ केवल प्रतिकार करना या गुस्से में फूट पड़ना है। परन्तु गीता हमें सिखाती है कि सच्ची शक्ति वह है जो अपमानों के बीच भी अपने मन को स्थिर, निर्मल और दयालु बनाए रखे। तुम अकेले नहीं हो, हर मानव के मन में कभी न कभी यह संघर्ष होता है। चलो, इस गहन विषय को गीता की अमृत वाणी से समझते हैं।

गुस्से के बिना अपमानों का सामना — शांति का पहला कदम
साधक, जब हम अपमानों का सामना करते हैं, तो मन में गुस्सा, चोट और अहंकार के भाव उठते हैं। यह स्वाभाविक है, क्योंकि हमारा मन अपने सम्मान को बचाने के लिए लड़ता है। परन्तु, गीता हमें सिखाती है कि हम अपने क्रोध को नियंत्रित कर, अपमानों को भी एक अवसर बना सकते हैं — आत्म-विकास का। चलिए, इस राह पर साथ चलते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(भगवद्गीता 2.47)