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ईर्ष्या: अज्ञान की छाया से निकलने की राह
साधक, जब मन में ईर्ष्या की आग जलती है, तो यह एक गहरा संकेत होता है कि हमारे अंदर कहीं कोई अधूरी समझ या भ्रम है। ईर्ष्या केवल एक भावना नहीं, बल्कि एक प्रकार का अज्ञान है जो हमें अपने और दूसरों के बीच की सच्चाई से दूर कर देता है। आइए, भगवद् गीता के दिव्य प्रकाश में इस प्रश्न का उत्तर खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येत मतं मम।।

(भगवद् गीता 3.37)

अहंकार की जड़: अज्ञानता की परतों को समझना
प्रिय शिष्य, तुम्हारा प्रश्न बहुत गहरा है। अहंकार, जो अक्सर हमारे मन में एक अनजानी आग की तरह जलता है, वास्तव में अज्ञानता की उपज है। जब हम अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं समझ पाते, तब हमारा मन भ्रम और असत्य की जाल में फंस जाता है। आइए, श्रीमद्भगवद्गीता के प्रकाश में इस रहस्य को समझते हैं।