प्रशंसा-आलोचना की लहरों में स्थिर रहो
साधक, जीवन की इस यात्रा में जब हम दूसरों की प्रशंसा और आलोचना के बीच झूलते हैं, तब मन अक्सर अस्थिर हो जाता है। तुम्हारा यह प्रश्न बहुत गहरा है, क्योंकि यही समझ हमें आंतरिक शांति की ओर ले जाती है। तुम अकेले नहीं हो; हर कोई इस द्वैत के बीच संतुलन खोजता है। चलो, गीता के स्नेहिल शब्दों से इस उलझन को सुलझाते हैं।