अपूर्णता की स्वीकार्यता: खुद से और दूसरों से प्रेम का पहला कदम
साधक,
जब हम अपने और दूसरों के भीतर अपूर्णता देखते हैं, तो अक्सर मन में बेचैनी, असंतोष और कभी-कभी निराशा जन्म लेती है। यह अनुभव पूरी तरह मानवीय है। परंतु जानो, यही अपूर्णता हमें विकास की राह दिखाती है, हमें विनम्र बनाती है, और प्रेम की गहराई में ले जाती है। तुम अकेले नहीं हो इस यात्रा में। चलो, भगवद गीता के अमृत शब्दों के साथ इस सफर को समझते हैं।