आत्मा की पहचान: बाहरी मान्यता से परे एक जीवन
साधक, जब हम अपने अस्तित्व को केवल बाहरी मान्यता, प्रशंसा या आलोचना से जोड़ देते हैं, तो हमारा मन अस्थिर हो जाता है। ऐसा जीवन एक झरने की तरह है जो केवल बारिश में ही बहता है, परंतु जब बारिश रुक जाती है तो वह सूख जाता है। भगवद गीता हमें सिखाती है कि असली पहचान हमारा आत्मा है, जो न तो बढ़ता है और न ही घटता है, और जो बाहरी परिस्थितियों से स्वतंत्र है। आइए, इस रहस्य को गहराई से समझें।