क्रोध का सच: जब आग भी प्रकाश बन जाए
साधक,
तुम्हारे मन में क्रोध को लेकर जो सवाल है, वह बहुत गूढ़ है। क्रोध एक ऐसी भावना है जो हमारे अंदर आग की तरह जलती है, कभी-कभी हमें जलाती है, कभी दूसरों को। पर क्या यह आग हमेशा हानिकारक होती है? भगवद गीता हमें इस आग को समझने और सही दिशा देने का ज्ञान देती है। चलो, इस ज्वलंत विषय पर गीता के प्रकाश में विचार करें।
🕉️ शाश्वत श्लोक
अध्याय 2, श्लोक 62-63
"ध्यानावस्थितात्मना नाशोऽपि सम्यग्विचारतः।
ध्यानावस्थितात्मना नाशोऽपि सम्यग्विचारतः॥"