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Karma Cycles & Life Challenges

विषैले कार्यस्थल में शालीनता का दीप जलाएं
साधक, जब हम अपने कर्मस्थल पर विषैले वातावरण का सामना करते हैं, तब मन में अनेक भाव उमड़ते हैं — निराशा, क्रोध, भय, और कभी-कभी हार भी। यह समझना आवश्यक है कि तुम अकेले नहीं हो, हर व्यक्ति जीवन में कभी न कभी ऐसे कठिन समय से गुजरता है। शालीनता और धैर्य के साथ इस परिस्थिति का सामना करना एक महान साधना है, जो तुम्हें आंतरिक शक्ति और शांति की ओर ले जाएगा।

🕉️ शाश्वत श्लोक

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(भगवद्गीता 2.47)

विषाक्त रिश्तों की जंजीरों से आज़ादी की ओर कदम
प्रिय शिष्य, जब हमारे अपने रिश्ते हमें अंदर से जकड़ लेते हैं, तो यह बहुत भारी और दर्दनाक अनुभव होता है। परिवार वह जगह होती है जहाँ हम सबसे अधिक प्यार और सुरक्षा की उम्मीद करते हैं, लेकिन जब वही रिश्ते विषाक्त हो जाते हैं, तो आत्मा पर बोझ बन जाते हैं। तुम अकेले नहीं हो। यह समझना पहला कदम है कि तुम्हारा दर्द वैध है और उससे निपटना संभव है। चलो, भगवद गीता के दिव्य प्रकाश में इस जंजीर को तोड़ने का रास्ता खोजते हैं।

विषैले भावनाओं के जाल से मुक्त होने का रास्ता
साधक, जब हमारे मन में विषैले भावनाओं का चक्र चलता है, तो वह हमें भीतर से कमजोर कर देता है, हमारे संबंधों को प्रभावित करता है और जीवन की सुंदरता को धुंधला कर देता है। तुम अकेले नहीं हो, हर कोई कभी न कभी ऐसे भावनात्मक जाल में फंसता है। आइए, गीता के दिव्य प्रकाश से इस अंधकार को दूर करें।

विषाक्त संबंधों में भी शांति का दीप जलाना संभव है
साधक, जब हम किसी ऐसे रिश्ते में होते हैं जो हमारे लिए विषाक्त हो, तब मन भीतर से टूटता है, शांति दूर नजर आती है। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी ऐसे क्षण आते हैं जब रिश्तों की जटिलता हमें उलझन में डालती है। आज हम भगवद गीता के दिव्य प्रकाश से उस अंधकार को दूर करेंगे, ताकि तुम्हारे भीतर की शांति फिर से खिल उठे।