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टूटे दिल से फिर मुस्कुराने की राह: खुद से दोस्ती का सफर
साधक, मैं जानता हूँ कि जब भावनात्मक टूट का दर्द गहरा होता है, तब अपने आप से जुड़ना सबसे कठिन लगता है। ऐसा नहीं कि तुम अकेले हो; यह दर्द मानव जीवन का हिस्सा है। चलो मिलकर उस अंधकार में एक उजली किरण खोजते हैं, जो तुम्हें फिर से अपने भीतर की दोस्ती का एहसास दिलाए।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्लोक:
अध्याय 6, श्लोक 5

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥

दिल की डोर से आज़ाद होने का सफर
साधक, जब हम किसी के प्रति भावनात्मक रूप से अत्यधिक निर्भर हो जाते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे हमारी खुशियाँ, हमारी शांति, और हमारा अस्तित्व उस व्यक्ति के हाथों में बंद हो गया हो। यह निर्भरता हमें भीतर से कमजोर कर देती है, हमारी स्वतंत्रता छीन लेती है। लेकिन याद रखिए, आप अकेले नहीं हैं। हर कोई इस जाल में फंस सकता है, और भगवद गीता हमें इस जाल से मुक्त होने का रास्ता दिखाती है।

आत्म-प्रेम की ओर: अहंकार से परे एक सच्चा रिश्ता
प्रिय मित्र, जब हम "आत्म-प्रेम" की बात करते हैं, तो अक्सर एक भ्रम होता है कि क्या यह अहंकार का पोषण तो नहीं कर रहा? यह उलझन बिल्कुल स्वाभाविक है। क्योंकि प्रेम का सच्चा स्वरूप अहंकार से बिलकुल अलग होता है। आइए, भगवद गीता की अमूल्य शिक्षाओं के साथ इस रहस्य को समझें और आत्म-प्रेम को एक शुद्ध, सरल और जीवनदायी अनुभव बनाएं।

प्रेम की गहराई में डूबो — आंतरिक प्रेम का सच्चा रंग
साधक,
तुम्हारा मन आंतरिक प्रेम की खोज में है, वह प्रेम जो न किसी बाहरी वस्तु से जुड़ा हो, न किसी स्वार्थ से। यह प्रेम वह है जो हमारे हृदय की गहराई से निकलता है, जो हर रिश्ते को मधुर बनाता है। चलो, श्रीकृष्ण की वाणी से इस प्रेम को समझते हैं और अपने भीतर की इस अमूल्य धरोहर को जागृत करते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 12, श्लोक 13-14
(भगवद गीता 12.13-14)

तुम अकेले नहीं हो — आध्यात्मिक ज्ञान से अकेलेपन का समाधान
साधक,
अकेलापन एक ऐसा अनुभव है जो हममें से कईयों को कभी न कभी छूता है। यह महसूस होना कि कोई नहीं है, या कोई समझ नहीं रहा, गहरा दर्द दे सकता है। लेकिन जान लो, अकेलापन केवल बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक भी होता है। और सबसे बड़ी बात — आध्यात्मिक ज्ञान की चाबी से हम इस अकेलेपन को मित्रता में बदल सकते हैं। चलो, गीता के अमर शब्दों में इस रहस्य को समझते हैं।