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ऑनलाइन पूर्णता के भ्रम से बाहर: सच्चे सुख की ओर पहला कदम
साधक, आज के डिजिटल युग में हर तरफ एक चमकदार दुनिया है जहाँ सब कुछ पूर्ण, सुंदर और सफल लगता है। पर क्या वह सब सच में पूर्णता है? या यह केवल एक भ्रम है जो हमारे मन को बेचैन करता है? चलिए, इस उलझन को भगवद्गीता के अमृत वचनों से समझते हैं।

चिंता के जाल से मुक्त होने का पहला कदम
साधक, तुम्हारे मन की व्याकुलता और चिंता को मैं समझता हूँ। परिपूर्णता की चाह और परिणामों की चिंता ने तुम्हारे हृदय को जकड़ रखा है। जानो, तुम अकेले नहीं हो; यह मानव स्वभाव की एक सामान्य प्रवृत्ति है। चलो, गीता के दिव्य शब्दों के साथ इस उलझन को सुलझाते हैं और मन को शांति की ओर ले चलते हैं।

डर को छोड़ो, सीख की ओर बढ़ो
मेरे साधक, तुम्हारा यह डर बिलकुल स्वाभाविक है। हम सब कभी न कभी गलतियाँ करने से डरते हैं, क्योंकि असफलता का सामना करना कठिन लगता है। परंतु क्या तुम जानते हो कि यही गलतियाँ तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी शिक्षक होती हैं? डर के कारण अगर तुम कदम रोक लेते हो, तो जीवन की सुंदरता और सीख से दूर हो जाओगे। चलो, गीता के श्लोकों से इस उलझन का समाधान खोजते हैं।