भीतर की आवाज़ सुनने का मधुर संगम: मौन और आत्म-चिंतन का महत्व
साधक,
जब बाहरी दुनिया की आवाज़ें बहुत तेज़ हो जाएं, तो भीतर की उस शांत नदी को सुनना ज़रूरी हो जाता है जो हमें हमारी सच्चाई से जोड़ती है। मौन और आत्म-चिंतन वही पुल हैं जो हमें अपने अंदर के गहरे सागर तक ले जाते हैं। यह यात्रा कभी अकेली नहीं होती, क्योंकि हर कदम पर तुम्हारे साथ तुम्हारा स्व-ज्ञान है।