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जब माता-पिता का दबाव भारी लगे — तुम अकेले नहीं हो
साधक, यह समझना बहुत जरूरी है कि माता-पिता का प्यार और उनकी अपेक्षाएँ तुम्हारे जीवन में एक मार्गदर्शक की तरह होती हैं। पर कभी-कभी उनका दबाव इतना बढ़ जाता है कि तुम्हारा मन घुटने लगता है। ऐसे समय में भगवद गीता की शिक्षाएँ तुम्हारे लिए एक प्रकाश बन सकती हैं, जो तुम्हें समझदारी और धैर्य से आगे बढ़ने की शक्ति देंगी।

प्यार और परिवार के बीच: कैसे निभाएं अपने दिल की बात
साधक, यह समझना बहुत स्वाभाविक है कि जब प्यार के मामलों में माता-पिता का दबाव आता है, तो मन अंदर से परेशान, उलझा और कभी-कभी अकेला महसूस करता है। तुम अकेले नहीं हो। हर उस दिल ने यह जंग लड़ी है जो अपने प्यार और परिवार के बीच संतुलन बनाना चाहता है। आइए, गीता की अमृत वाणी से इस उलझन को सुलझाने की कोशिश करें।

माँ-बाप के प्रेम के बीच: गीता का स्नेहपूर्ण सन्देश
साधक, जब हम माता-पिता के प्रेम और उससे जुड़ी आसक्ति की बात करते हैं, तो यह दिल के सबसे नाजुक तारों को छू जाता है। यह प्रेम अनमोल है, पर कभी-कभी यह आसक्ति बन जाती है, जो हमारे मन को उलझनों में डाल देती है। आइए, गीता के अमृतवचन से इस प्रेम की गहराई को समझें और अपने मन को शांति का उपहार दें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

मामा तु सर्वाणि कर्माणि विद्यां चाविदां च यत् |
मयि सर्वाणि भूतानि संयम्य मामेत्य उदाहृताः ||

(भगवद्गीता १०.२०)