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डर की बेड़ियाँ तोड़ो: कर्म से भागना समाधान नहीं
साधक, जब हम कर्म के भय से घिरे होते हैं, तब हमारा मन थम सा जाता है। यह डर हमें आगे बढ़ने से रोकता है, हमारी ऊर्जा को जकड़ लेता है। पर याद रखो, कर्म का डर तुम्हारा मित्र नहीं, बल्कि तुम्हारा भ्रम है। इसे समझना और उसके पार जाना ही जीवन की सच्ची स्वतंत्रता है।

डर को छोड़ो, प्रेम से जीवन जियो
प्रिय मित्र, यह बहुत स्वाभाविक है कि जब हम दूसरों के प्रति अपने कर्मों या निर्णयों को लेकर सोचते हैं, तो मन में डर उठता है—डर कि कहीं हम उन्हें निराश न कर दें। यह चिंता हमारे भीतर एक अनजाने बंधन की तरह होती है, जो हमें अपने सत्य और स्वाभिमान से दूर ले जाती है। परन्तु भगवद गीता हमें सिखाती है कि डर से ऊपर उठकर, अपने धर्म और कर्म के पथ पर चलना ही सच्चा मोक्ष है।