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दूसरों की देखभाल में स्वयं को न खोना — भावनात्मक संतुलन की ओर पहला कदम
साधक, जब हम अपने प्रियजनों, मित्रों या समाज की सेवा में लग जाते हैं, तो अक्सर अपनी भावनाओं को पीछे छोड़ देते हैं। यह स्वाभाविक है कि दूसरों की देखभाल करते हुए हम थकान, उलझन या भावनात्मक असंतुलन महसूस करें। परंतु याद रखो, जैसे दीपक दूसरे दीपक को जलाता है पर स्वयं नहीं बुझता, वैसे ही तुम्हें भी अपने भीतर की रोशनी को बचाए रखना है। आइए, भगवद गीता के अमूल्य श्लोकों से इस राह को समझते हैं।