चलो यहाँ से शुरू करें: जब उत्साह खो गया हो
साधक, जब जीवन की राह में उत्साह की लौ मंद पड़ती है, और हर चीज़ बेरंग लगने लगती है, तब यह समझना ज़रूरी है कि यह अनुभव तुम्हारे अकेले नहीं है। हर मनुष्य को कभी न कभी ऐसा क्षण आता है जब भीतर की ऊर्जा स्थिर हो जाती है। यह अवस्था अस्थायी है, और इसे पार करना तुम्हारे हाथ में है। आइए, गीता के दिव्य प्रकाश से इस अंधकार को दूर करें।