लक्ष्य और समर्पण: एक साथ चलने की कला
साधक,
तुम्हारा मन लक्ष्य की ओर दृढ़ है, पर भीतर कहीं एक उलझन है — कैसे बिना अपने सपनों को त्यागे, आंतरिक समर्पण कर सकूँ? यह प्रश्न जीवन की गहराई में उतरने का पहला कदम है। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो, हर युग में अनेक साधक इसी द्वंद्व से गुजरे हैं। चलो, इस राह को भगवद गीता के प्रकाश में समझते हैं।