recognition

Mind Emotions & Self Mastery
Life Purpose, Work & Wisdom
Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

अकेलापन नहीं, एक नई यात्रा की शुरुआत है
साधक, जब तुमने कुछ हासिल किया है, तब भी अलग-थलग महसूस करना स्वाभाविक है। यह तुम्हारे मन का संकेत है कि तुम्हारा मन अभी भी उस असली जुड़ाव और संतोष की तलाश में है, जो बाहरी उपलब्धियों से नहीं मिलता। यह भावनाएँ तुम्हें खुद से और अपने अस्तित्व से गहरा जुड़ाव बनाने का निमंत्रण हैं।

सफलता की चाह में खोया नहीं जाना — एक प्रेमपूर्ण संवाद
प्रिय युवा मित्र,
तुम्हारे मन में जो सफलता और पहचान की इच्छा है, वह स्वाभाविक है। यह तुम्हारे भीतर की ऊर्जा का एक स्वरूप है जो तुम्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। पर क्या यह इच्छा गलत है? आइए, गीता के प्रकाश में इस प्रश्न का उत्तर खोजें।

मान्यता की चाह: क्या यह गलत है?
साधक,
तुम्हारे मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या कार्यस्थल पर मान्यता और प्रशंसा की इच्छा रखना गलत है। यह इच्छा तुम्हारे अंदर छुपी हुई स्वाभाविक मानवीय भावनाओं का प्रतिबिंब है। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। हर व्यक्ति चाहता है कि उसके प्रयासों को सराहा जाए, उसकी मेहनत को पहचाना जाए। आइए, भगवद गीता की दिव्य दृष्टि से इस उलझन को सुलझाएं।