जीवन का सागर है, नाव खुद तुम्हारी है
प्रिय शिष्य, जब जीवन की लहरें इतनी उफनती हैं कि मन में निराशा के बादल छाने लगते हैं, तो तुम्हारे भीतर एक सवाल उठता है — क्या जीवन छोड़ देना ही समाधान है? यह प्रश्न बहुत गूढ़ और संवेदनशील है। मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि तुम अकेले नहीं हो, तुम्हारे भीतर जो भी भावना है, वह पूरी मानवता का हिस्सा है। आइए, हम भगवद गीता के प्रकाश में इस प्रश्न को समझें।