दबाव के बीच भी अपना रास्ता कैसे खोजें — सामाजिक अपेक्षाओं के बोझ तले
साधक,
समाज की अपेक्षाएँ कभी-कभी हमारे दिल की आवाज़ को दबा देती हैं। यह बोझ भारी लगता है, और मन उलझन में पड़ जाता है कि मैं क्या करूँ? क्या मैं सबकी खुशियों के लिए खुद को भूल जाऊँ, या अपनी राह पर चलूँ? यह सवाल बहुत गहरे हैं, और मैं यहाँ हूँ तुम्हारे साथ, तुम्हारे मन की इस उलझन को समझने के लिए।
🕉️ शाश्वत श्लोक: अपनी धर्म और कर्म की राह पकड़ो
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
— भगवद्गीता 2.47