संकोच के सागर में डूबे नहीं, ज्ञान के दीप जलाओ
साधक, जीवन के मार्ग पर जब हम ज्ञान की गहराई में उतरते हैं, तब कभी-कभी एक अजीब सी अनिश्चितता और संकोच हमारे मन को घेर लेता है। "क्या मैं सही निर्णय ले रहा हूँ? क्या मेरा कर्म फलदायी होगा?" ऐसे प्रश्न हमारे भीतर उठते हैं। यह स्वाभाविक है, क्योंकि ज्ञान जब कर्म के साथ जुड़ता है, तब वह पूर्णता की ओर ले जाता है। परंतु, ज्ञानी भी संकोच क्यों करते हैं? आइए, गीता के दिव्य प्रकाश में इस उलझन को समझते हैं।