hesitation

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Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

संकोच के सागर में डूबे नहीं, ज्ञान के दीप जलाओ
साधक, जीवन के मार्ग पर जब हम ज्ञान की गहराई में उतरते हैं, तब कभी-कभी एक अजीब सी अनिश्चितता और संकोच हमारे मन को घेर लेता है। "क्या मैं सही निर्णय ले रहा हूँ? क्या मेरा कर्म फलदायी होगा?" ऐसे प्रश्न हमारे भीतर उठते हैं। यह स्वाभाविक है, क्योंकि ज्ञान जब कर्म के साथ जुड़ता है, तब वह पूर्णता की ओर ले जाता है। परंतु, ज्ञानी भी संकोच क्यों करते हैं? आइए, गीता के दिव्य प्रकाश में इस उलझन को समझते हैं।

चलो यहाँ से शुरू करें: नई शुरुआत का साहस
नई शुरुआत का डर हर किसी के दिल में होता है। यह डर इसलिए भी आता है क्योंकि हम अनजाने में कदम रखने से घबराते हैं। लेकिन याद रखो, हर महान यात्रा का पहला कदम अनिश्चितता से भरा होता है। तुम अकेले नहीं हो, और इस डर को पार करना संभव है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

संकल्प और साहस से जुड़ा श्लोक:

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(भगवद् गीता 2.47)

चलो यहाँ से शुरू करें — भय को समझना और उससे पार पाना
साधक, तुम्हारे मन में उठता यह सवाल बहुत स्वाभाविक है। कोई भी नया कदम, कोई भी नया प्रयास हम सबके लिए थोड़ा डरावना लगता है। यह घबराहट तुम्हारे भीतर की चेतना का संकेत है कि तुम उस अनजानी राह पर चलने को तैयार हो। घबराहट का अर्थ यह नहीं कि तुम असफल हो, बल्कि यह कि तुम अपने भीतर छुपी संभावनाओं को पहचानने लगे हो। चलो इस भय को समझते हैं और उसे पार करने का मार्ग खोजते हैं।