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Karma Cycles & Life Challenges

धीमी प्रगति में भी उम्मीद का दीप जलाए रखें
प्रिय मित्र, जब हम अपने आदतों और लत से लड़ते हैं, तो प्रगति अक्सर धीमी और धीमी लगती है। यह समय निराशा और हताशा का होता है। पर जान लें, आप अकेले नहीं हैं। हर बदलाव की राह में संघर्ष और धैर्य की ज़रूरत होती है। आइए, भगवद गीता के अमूल्य संदेश से इस उलझन को सुलझाएं।

चलो भक्तिपथ की प्रगति की ओर कदम बढ़ाएं
साधक, जब कोई भक्त अपने आध्यात्मिक सफर पर बढ़ता है, तो उसके मन, वचन और कर्म में एक अनोखी चमक और शांति दिखती है। यह प्रगति केवल बाहरी नहीं, बल्कि भीतर से होती है। तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर भगवद गीता के प्रकाश में हम देखेंगे, जिससे तुम्हारे मन को स्पष्टता और प्रेरणा मिलेगी।

धीरे-धीरे, पर निरंतर — सफलता की सच्ची राह
साधक, जब तुम अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हो और गति धीमी लगे, तो यह समझो कि तुम अकेले नहीं हो। जीवन की यात्रा में कभी-कभी धीमी चाल ही सबसे स्थायी और सशक्त होती है। यह समय है धैर्य और आत्म-विश्वास की खेती करने का। चलो, गीता के अमूल्य शब्दों से इस उलझन का समाधान खोजते हैं।

भक्ति की मधुर अनुभूति: जब आत्मा कृष्ण की ओर खिंचती है
साधक,
तुम्हारा यह प्रश्न अपने आप में एक दिव्य यात्रा की शुरुआत है। भक्ति, जो कि प्रेम और समर्पण का सुंदर फूल है, धीरे-धीरे खिलता है और उसके संकेत भी मन और हृदय में नर्म-नर्म झलकते हैं। यह जानना कि भक्ति बढ़ रही है या नहीं, तुम्हारे भीतर की उस गहरी संवेदना को समझने का पहला कदम है। चलो, साथ में इस दिव्य अनुभूति के संकेतों को समझते हैं।

धीरे चलना भी प्रगति है — करियर की राह में धैर्य का सहारा
प्रिय मित्र, जब करियर की गति धीमी लगती है, तो मन में निराशा और बेचैनी जन्म लेती है। ऐसा लगता है जैसे सब कुछ ठहर गया हो, और आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं दिखता। पर याद रखो, हर वृक्ष अपने समय पर फल देता है, और हर नदी अपनी गति से समुंदर तक पहुँचती है। तुम अकेले नहीं हो, यह अनुभव जीवन का हिस्सा है। आइए, भगवद गीता के अमृत शब्दों से इस उलझन को सुलझाएं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

— भगवद गीता 2.47