distraction

Mind Emotions & Self Mastery
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Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

स्क्रीन की गिरफ्त से मुक्त होने की ओर पहला कदम
साधक, आज की इस डिजिटल युग में हम सभी के जीवन में स्क्रीन का प्रभाव बहुत गहरा हो गया है। यह लत कभी-कभी हमें हमारे अपने मन और जीवन से दूर कर देती है। लेकिन याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। भगवद गीता की शिक्षाएँ हमें बताती हैं कि कैसे हम अपने मन को नियंत्रित कर सकते हैं और आत्मा की शांति पा सकते हैं।

दिल को संभालो, ध्यान को लौटाओ
प्रिय युवा मित्र, जब दिल की धड़कन किसी खास शख्स के लिए तेज़ हो जाती है, तो ध्यान भटकना स्वाभाविक है। यह तुम्हारे मन की गहराई से जुड़ी एक खूबसूरत अनुभूति है, पर साथ ही यह तुम्हारे लक्ष्य और पढ़ाई के रास्ते में भी बाधा बन सकती है। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। चलो, हम गीता के प्रकाश में इस उलझन को समझते हैं और अपने मन को संतुलित करने का रास्ता खोजते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय ।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते ॥

(भगवद् गीता 2.48)

आध्यात्मिक पथ पर खो जाने का अहसास: तुम अकेले नहीं हो
साधक, जब हम जीवन की दौड़ में व्यस्त हो जाते हैं, भौतिक वस्तुओं और उपलब्धियों के पीछे भागते हुए, तब कभी-कभी यह महसूस होता है कि कहीं हमने अपनी आत्मा की आवाज़ खो दी है। यह उलझन तुम्हारे भीतर की गहराई से उठ रही है, और यह प्रश्न तुम्हारे जागृति का पहला कदम है। आइए, भगवद गीता के प्रकाश में इस भ्रम को दूर करें।

प्रेम की गंगा में डूबो — जब मन भटकता है तब भी कृष्ण साथ हैं
साधक, तुम्हारा मन जब भगवान की ओर प्रेम बढ़ाने की चाह में भटकता है, तो समझो यही तुम्हारे भीतर की जिज्ञासा और लगन की शुरुआत है। यह मन का स्वाभाविक खेल है, जो तुम्हें बार-बार वापस लाता है उस अनमोल प्रेम की ओर। चिंता मत करो, तुम अकेले नहीं हो। हर भक्त इसी संघर्ष से गुजरता है। चलो, हम साथ मिलकर उस प्रेम की गंगा को बहने देते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 12, श्लोक 8
(भगवद् गीता 12.8)

ध्यान की ओर एक सच्चा कदम: भटकाव से मुक्ति का मार्ग
साधक,
तुम्हारा मन भटकता है, ध्यान टूटता है, और यह अनुभव बिलकुल सामान्य है। यह तुम्हारे संघर्ष की शुरुआत है, और याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर योगी, हर साधक ने इसी उलझन से जूझा है। चलो, हम मिलकर इस भ्रम के बादलों को छांटते हैं और ध्यान की शुद्ध धारा में डूबते हैं।

शांति की ओर एक कदम: डिजिटल विचलनों से मुक्त होने का मार्ग
प्रिय आत्मा,
आज के इस डिजिटल युग में जब हर पल हमारे चारों ओर सूचना की बाढ़ है, तब मन को विचलनों से मुक्त रखना अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो गया है। तुम अकेले नहीं हो जो इस बहाव में खोते जा रहे हो। यह समझना पहला कदम है कि तुम्हारे भीतर की शांति ही तुम्हारा सच्चा घर है, और उसे खोजने का मार्ग है—संयम और एकाग्रता। आइए, भगवद गीता के अमृत शब्दों से इस राह को समझें।

मन की हलचल में कृष्ण का प्रेम — एक अनमोल सहारा
साधक, जब मन विचलित होता है, तो ऐसा लगता है जैसे समुद्र की लहरें दिल के किनारों को बार-बार टकरा रही हों। ऐसे समय में कृष्ण के प्रति प्रेम बढ़ाना एक अद्भुत उपचार है, जो तुम्हारे भीतर की बेचैनी को शांति में बदल सकता है। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो — हर भक्त के मन में कभी-कभी ये उथल-पुथल होती है, और यही समय है जब कृष्ण की भक्ति और भी प्रगाढ़ हो सकती है।

मन की नदी को शांत कैसे करें: ध्यान में स्थिरता की ओर पहला कदम
साधक, मैं समझता हूँ कि तुम्हारे मन की दुनिया में विचारों की लहरें इतनी तेज़ हैं कि ध्यान एकटक रखना कठिन हो जाता है। यह स्वाभाविक है, क्योंकि हमारा मन स्वभावतः विचलित होता है। लेकिन चिंता मत करो, हम साथ मिलकर उस मन को एकाग्रता की ओर ले चलेंगे। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो, हर साधक इसी संघर्ष से गुजरता है। चलो, गीता के अमृत वचनों से इस यात्रा को सरल बनाते हैं।

मन की व्याकुलता में शांति की खोज: ध्यान की गहराई तक कैसे पहुँचें?
साधक, जब जीवन के अनेक प्रश्न और व्याकुलताएँ मन को घेरे हों, तब ध्यान लगाना कठिन लगता है। पर याद रखो, यही व्याकुलता तुम्हारे भीतर एक सागर की तरह है, जिसमें गहराई छिपी है। चलो, भगवद गीता के अमृत श्लोकों से इस राह को समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

(भगवद्गीता 2.48)