equanimity

Mind Emotions & Self Mastery
Life Purpose, Work & Wisdom
Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

कार्य में स्वतंत्रता: प्रशंसा और आलोचना के बंधनों से मुक्त होना
प्रिय शिष्य, यह प्रश्न तुम्हारे मन की गहराई को छूता है। जब हम नेतृत्व या कार्य की जिम्मेदारी निभाते हैं, तब बाहरी प्रशंसा या आलोचना हमारे मन को विचलित कर सकती है। परंतु, सच्चा नेतृत्व और कर्म वही है जो अपने फल की चिंता किए बिना, निस्वार्थ भाव से किया जाए। आइए, भगवद गीता की अमूल्य शिक्षाओं के साथ इस उलझन को सरल बनाएं।

🌿 मन का सागर: संतुलन की ओर पहला कदम
साधक, तुम्हारा मन एक सागर के समान है—कभी शांत, कभी उथल-पुथल से भरा। संतुलित मन वही है, जो इस सागर की गहराई में स्थिरता बनाए रख सके। चिंता न करो, यह हर किसी की यात्रा है, और गीता में इसके लिए अमूल्य ज्ञान है।

सफलता और असफलता के बीच संतुलन — जीवन का सच्चा योग
साधक,
तुम्हारे मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है। सफलता की खुशी और असफलता का दर्द दोनों ही जीवन के हिस्से हैं। परंतु जब हम इन दोनों के बीच संतुलन बनाना सीख जाते हैं, तभी जीवन सुकून और स्थिरता से भर जाता है। चलो, इस राह पर साथ चलते हैं।

स्थिर मन, अटल आत्मा: स्थितप्रज्ञता की ओर पहला कदम
प्रिय शिष्य,
तुम्हारा मन विचलित है, विचारों की लहरें उफान मार रही हैं, और आत्म-नियंत्रण की चाह में तुम थक चुके हो। जान लो, यह संघर्ष मानव जीवन का सामान्य हिस्सा है। लेकिन इसी भीतर छुपा है वह दिव्य बीज, जिसे nurturing कर हम "स्थितप्रज्ञ" बन सकते हैं — वह मनुष्य जो न तो सुख में बहकता है, न दुःख में डगमगाता है। चलो, इस आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत साथ मिलकर करते हैं।

शांति का सागर: आंतरिक समत्व की ओर पहला कदम
साधक, जब मन की दुनिया उथल-पुथल से घिरी हो, जब इच्छाएँ और आसक्तियाँ हमें बाँधने लगें, तब आंतरिक समत्व की खोज सबसे बड़ी आवश्यकता बन जाती है। गीता हमें यही सिखाती है — जीवन के सुख-दुख में स्थिरता और संतुलन बनाए रखना, जिससे हम अंततः मुक्त हो सकें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

संसार के उतार-चढ़ाव में स्थिर रहने का मंत्र:

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु |
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ||

(अध्याय ६, श्लोक १७)

भावनाओं के समुद्र में स्थिरता: इच्छा से उत्पन्न उतार-चढ़ाव को समझना
साधक, तुम्हारे मन में जो इच्छा से उत्पन्न भावनात्मक उथल-पुथल है, वह जीवन का स्वाभाविक हिस्सा है। परंतु यह भी संभव है कि हम उस उथलते समंदर में स्थिर रह सकें। चलो, इस यात्रा को गीता के अमूल्य ज्ञान से समझते हैं।

मन की समत्वता: कृष्ण का अमूल्य उपहार
प्रिय शिष्य,
जब मन की हलचल और भावनाओं का समुद्र उफान मारने लगता है, तब समत्वता का सूत्र हमारे लिए एक प्रकाशस्तंभ बन जाता है। यह समत्वता न केवल मन की स्थिरता देती है, बल्कि जीवन की हर परिस्थिति में स्थिर और शांत रहने की शक्ति भी प्रदान करती है। आइए, भगवान श्रीकृष्ण के उस अमर सूत्र को समझें जो मन को सम और स्थिर बनाता है।