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अंधकार में दीपक: दुख के समय दिव्य इच्छा के प्रति समर्पण का सहारा
साधक, जब जीवन में दुख की घटाएँ घिरती हैं, तब मन बेचैन, असहाय और भ्रमित हो जाता है। तुम्हारा यह प्रश्न बहुत गहरा है — कैसे हम अपने दुःख के समय में उस दिव्य इच्छा के प्रति समर्पित रह सकते हैं जो हमें अंततः शांति और शक्ति देती है। आइए, गीता के अमृत शब्दों से इस उलझन को सुलझाते हैं।

शांति और स्थिरता की ओर पहला कदम: तुम अकेले नहीं हो
साधक, जब मन की लहरें उठती हैं और भीतर की दुनिया अस्थिर हो जाती है, तब धैर्य और मानसिक स्थिरता की खोज स्वाभाविक है। यह यात्रा अकेली नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति के जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है। आइए, भगवद गीता के अमृतमय श्लोकों से हम उस स्थिरता का मार्ग खोजें।