चलो बंदर मन को शांति की ओर ले चलें
साधक, तुम्हारा मन एक बंदर की तरह कूदता-फांदता, एक जगह टिकता नहीं। यह स्वाभाविक है, क्योंकि मन की प्रकृति ही ऐसी है। पर चिंता मत करो, गीता की अमृत वाणी में हमें इसका समाधान भी मिलता है। आइए, हम मिलकर इस बंदर मन को शांति और स्थिरता की ओर मार्गदर्शन करें।