desires

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Life Purpose, Work & Wisdom
Relationships & Connection
Devotion & Spritual Practice
Karma Cycles & Life Challenges

इच्छाओं के समंदर में एक नाव — कृष्ण के साथ संतुलन की ओर
साधक, जब मन की गहराइयों में इच्छाओं का तूफ़ान उठता है, तब ऐसा लगता है जैसे हम खुद को खो देते हैं। यह लड़ाई अकेले नहीं है, हर मानव के जीवन में होती है। पर यह भी सच है कि इच्छाओं को नियंत्रित कर हम अपने जीवन को शांति और संतुलन की ओर ले जा सकते हैं। आइए, श्रीकृष्ण की गीता की अमृत वाणी से इस राह को समझें।

भौतिकवाद के भ्रम से परे: गीता का आध्यात्मिक संदेश
प्रिय शिष्य, इस संसार में भौतिक वस्तुओं और सुखों की ओर आकर्षण स्वाभाविक है। हम सब कभी न कभी इस मोह-माया के जाल में फंसते हैं और सोचते हैं कि यही सब कुछ है। परन्तु भगवद गीता हमें एक गहरा सत्य बताती है — कि जीवन केवल भौतिक वस्तुओं तक सीमित नहीं है। आइए, गीता के प्रकाश में इस विषय को समझते हैं।

जीवन के उस पार अधूरी इच्छाओं का सफर
साधक, जब हम मृत्यु के बाद की बात करते हैं, तो मन में अनेक सवाल उठते हैं। अधूरी इच्छाएँ, अनसुलझे रिश्ते, अधूरी कहानियाँ— ये सब हमारे मन को बेचैन करते हैं। परंतु जानो, तुम अकेले नहीं हो। यह प्रश्न सदियों से मानव मन को विचलित करता रहा है। आइए, भगवद गीता के प्रकाश में इस रहस्य को समझें।

इच्छाओं के जाल में फंसा मन: तुम अकेले नहीं हो
साधक, जब मन की गहराइयों में इच्छाएं उठती हैं और वे पूरी न हों तो पीड़ा जन्म लेती है। यह एक ऐसा चक्र है जिसमें अक्सर हम खो जाते हैं। पर याद रखो, यह मनुष्य का स्वाभाविक अनुभव है, और भगवद गीता में इसके लिए दिव्य समाधान भी दिया गया है। आइए, इस उलझन को गीता के प्रकाश में समझें।