🎇 "मनोरंजन के मृगतृष्णा से मुक्त हो, सच्ची शक्ति की ओर बढ़ो"
साधक,
आज तुम्हारा मन मनोरंजन और चालाकी की जाल में उलझा हुआ है, जो क्षणिक सुख देता है पर असली आनंद और आत्मबल से दूर ले जाता है। यह समझना बेहद जरूरी है कि असली शक्ति और स्थिरता मन के नियंत्रण में है, न कि बाहरी तृप्ति में। तुम अकेले नहीं हो; हर व्यक्ति के मन में कभी न कभी यह द्वंद्व आता है। चलो, गीता के शाश्वत ज्ञान के साथ इस उलझन से बाहर निकलने का मार्ग खोजते हैं।