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अंधकार से प्रकाश की ओर: तमस से सत्‍व की यात्रा
साधक, जीवन के उस मोड़ पर तुम खड़े हो जहाँ तमस — अज्ञानता, आलस्य और बंधनों का अंधेरा — तुम्हें रोक रहा है। यह स्वाभाविक है कि बदलाव कठिन लगता है, पर याद रखो, हर अंधेरे के बाद उजाला आता है। तुम अकेले नहीं हो, यह यात्रा हर मानव की होती है। चलो मिलकर कदम बढ़ाएं, तमस से सत्‍व की ओर।

लत के जाल से निकलने का पहला प्रकाश
साधक, जब हम लत की बात करते हैं, तो यह समझना जरूरी है कि यह केवल एक आदत नहीं, बल्कि हमारे मन और आत्मा की गहरी प्रवृत्तियों का परिणाम है। तुम अकेले नहीं हो; हर कोई कभी न कभी किसी न किसी लत के चक्र में फंसा हुआ महसूस करता है। यह जाल हमें अपने भीतर के असंतोष, भय, या अनियंत्रित इच्छाओं से बचाने की एक कोशिश होती है।

आलस्य के अंधकार से निपटने का प्रकाश मार्ग
साधक,
तुम्हारे मन में जो आलस्य और जड़ता की छाया है, वह मानव जीवन का स्वाभाविक हिस्सा है। यह कोई कमजोरी नहीं, बल्कि समझने और पार करने का एक अवसर है। तुम अकेले नहीं हो, हर महान व्यक्ति ने इस तमसिक स्वभाव से जूझा है। आइए, हम गीता के दिव्य प्रकाश में इस अंधकार को दूर करने का मार्ग खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्लोक — भगवद् गीता 14.5

तमस् प्रजायते मृत्युस्मृतिर्मोहः तमः तथा।
जन्म मृतस्य च मेध्यस्य तत्त्वं विद्धि मामकम्॥

आलस्य के अंधकार से निकलने का दीपक: गीता का संदेश
साधक, जब मन आलस्य की जंजीरों में बंध जाता है, तो जीवन की ऊर्जा थम सी जाती है। तुम अकेले नहीं हो; यह संघर्ष हर मनुष्य के साथ आता है। भगवद गीता हमें बताती है कि आलस्य को कैसे परास्त किया जाए और आत्मा की शक्ति को जागृत किया जाए। आइए, इस दिव्य ग्रंथ के प्रकाश में हम अपने मन के आलस्य को समझें और उसे दूर करें।