फिर से प्रेम और समझ की ओर बढ़ें: परिवार के साथ अपने व्यवहार का पछतावा
साधक, जब हम अपने माता-पिता या परिवार के प्रति किए गए व्यवहार पर पछतावा महसूस करते हैं, तो यह हमारी आत्मा की गहराई से उठी हुई एक पुकार होती है — सुधार की, प्रेम की, और पुनः जुड़ने की। यह भावना खुद में एक उपहार है, जो हमें बेहतर इंसान बनने का अवसर देती है। चलिए, इस उलझन को भगवद गीता के अमूल्य ज्ञान से समझते हैं।